जीवन को कुछ इस तरह जिया अब तक
कोई भी पश्चात्ताप नही मुझको
कुछ अच्छा या कि बुरा ही इस जग में
परिभाषाओं को पढ़ कर नही किया
हमने चुल्लू से नहीं,ओक से ही
इस जीवन का भरपूर अमृत पिया
जीवन में यदि वरदान न पाया है
तो मिला कभी अभिशाप नहीं मुझको
कुछ शकुन या कि अपशकुन नहीं देखा
क्षण जैसा आया, जीवन में ढाला
दिखलाई देती मृत्यु मगर उसका,
अंदेशा था, आंतक नहीं पाला
निश्चित आना है मौत मगर उसकी
सुन पड़ती है पदचाप नहीं मुझको
गाली या स्तुति, कांटें हॉं या की कुसुम
सब सहज भाव से ही स्वीकारा है
सब एक स्वाद जीवन का फर्क नहीं
है हंसी मधुर या आंसू खारा है
मन की अब ऐसी स्तिथि है जब लगता
कुछ पुण्य नहीं कुछ पाप नहीं मुझको!
~~चंद्रसेन विराट~~
Saturday, March 6, 2010
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