Saturday, March 6, 2010

नादाँ है वाइज जो करता है एक क़यामत का चर्चा ,
यहाँ रोज निगाहे मिलती है यहाँ रोज क़यामत होती है . .........

सौ सौ उम्मीदे बंधती है एक एक निगाह पर,
मुझको न प्यार से देखा करे कोई .................

बस इतनी सी बात है जिस पे जाती है जान हमारी ,
कि उन पर जाँ निसारों मे नाम हमारा आता है.

"AGAR WO PUCH LE HUMSE TUMHE KIS BAAT KA GHAM HAI'
TO KIS BAAT KA GHAM HAI AGAR WO PUCH LE HUMSE"

हर रोज़ दिल उदास होता है और शाम गुज़र जाती है "pathan"..
एक रोज़ शाम उदास होगी और हम गुज़र जायंगे ..!

बड़ी तैय्यारियो से हमने वक्त को छेडा है ,
हमारी जुस्तजू है के वक्त का पन्ना पलटा जाए .....

न लुटता दिन को तो, रात को क्यों बेखबर सोता ,
रहा खटका न चोरी का, दुआ देता हू रहजन(लुटेरे) को ....

नजर न लग जाए उनके दस्त-ओ-बाजु को
ये लोग क्यों मेरे जख्म-ए-जिगर को देखते है ...

अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गये हैं
आते हैं मगर दिल को दुखाने नहीं आते......
अहबाब=दोस्त

मुझे यकी सा आ गया के यही है मंजिल मेरी ,
सरे राह जब किसी ने मुझे दफ़तन पुकारा .............
-----शकील बदायुनी
कभी यकबयक तवज्जो , कभी दफ़तन तगाफुल
मुझे आजमा रहा है कोई रुख बदल बदल के ..........

होता है शौक वस्ल का इंकार से ज्यादा ,
कब तुझे दिल से उठाते है, तेरी नहीं से हम ......
----मीर
"मीर" बहुत खीचती है यार के कूचे की जमीं ,
लहू उस खाक पे गिरना है मुक़र्रर अपना ........

कुछ तो मजबुरिया रही होगी ,
यु ही कोई बेवफा नहीं होता ,
अपना दिल भी टटोल के देखो ,
फासला दिल का बेवजह नहीं होता ... तेरी तलब में..... जला डाले आशियाने तक..... कहाँ रहूँ बता .......तेरे दिल में घर बनाने तक....... . .

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