Saturday, March 6, 2010

हम जो डूबे नहीं अब तक तो बड़े ताव में हो
तुम ये क्यों भूल गए तुम भी इसी नाव में हो

कांच का जिस्म लिए बैठे हो चौराहे पर
तुमको ये भी एहसास नहीं कि पथराव में हो

मिलने चलिए तो हथेली पर जरे जां लेकर
आज क्यों कोई कमी यारो के बर्ताव में हो

सस्ते दामो में कहीं बिकते हैं जवाहर पारे
दिल का सौदा है जरा चढ़ते हुए भाव में हो

कैसा भरपूर था वार उसकी नजर का ''पथिक''
न कसक दिल कि मिटे और न कमी घाव में हो..
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