Saturday, March 6, 2010

वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है
ये अगर रस्मों, रिवाज़ों से बगावत है तो है

सच को मैने सच कहा, जब कह दिया तो कह दिया
अब ज़माने की नज़र में ये हिमाकत है तो है

कब कहा मैनें कि वो मिल जाये मुझको, मै उसे
ग़ैर न हो जाये वो बस इतनी हसरत है तो है

जल गया परवाना तो शम्मा की इसमे क्या खता
रात भर जलना-जलाना उसकी किस्मत है तो है

दोस्त बन कर दुश्मनों-सा वो सताता है मुझे
फिर भी उस ज़ालिम पे मरना अपनी फ़ितरत है तो है

दूर थे और दूर हैं हरदम ज़मीनों-आसमाँ
दूरियों के बाद भी दोनों में कुर्बत है तो है
******************************
सब में शामिल हो मगर सबसे जुदा लगती हो ..
सिर्फ हमसे ही नहीं खुदसे भी जुदा लगती हो ..

आँख उठती है न जुकती है कीसी की खातिर ....
साँस चढ़ती है न रुकती है कीसी के खातिर ...
जो कीसी दर पे ठहरे वो हवा लगती हो ....
सिर्फ हमसे ही नहीं खुदसे भी जुदा लगती हो ..

जुल्फ लहराए तो आँचल में छुपा लेती हो ....
होठ थर्राए तो दातो में दबा लेती हो .....
जो कभी खुलके न बरसे वो घटा लगती हो ....
सिर्फ हमसे ही नहीं खुदसे भी जुदा लगती हो ..

जागी जागी नज़र आती हो ..न..सोयी सोयी
तुम तो हो अपने ही ख्यालात में खोयी खोयी
कीसी मायूस मुसव्विर की दुवा लगती हो ...
सिर्फ हमसे ही नहीं खुदसे भी जुदा लगती हो ..

शायर-साहिर लुधियानवी
************************************
मेरी खामोशियों में भी फसाना ढूंढ लेती है
बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है
हकीकत जिद किए बैठी है चकनाचूर करने को
मगर हर आंख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है
न चिडि़या की कमाई है न कारोबार है कोई
वो केवल हौसले से आबोदाना ढूंढ लेती है
समझ पाई न दुनिया मस्लहत मंसूर की अब तक
जो सूली पर भी हंसना मुस्कुराना ढूंढ लेती है
उठाती है जो खतरा हर कदम पर डूब जाने का
वही कोशिश समन्दर में खजाना ढूंढ लेती है
जुनूं मंजिल का, राहों में बचाता है भटकने से
मेरी दीवानगी अपना ठिकाना ढूंढ लेती

No comments:

Post a Comment