Saturday, March 6, 2010

कभी कहा ना कीसी से तेरे फ़साने को.....
न जाने कैसे खबर हो गयी ज़माने को....

सुना है गैर के महफिल में तुम न जाओगे
कहो तो आज सजा लु गरीब खाने को.......

दुवा बहार की मांगी तो इतने फुल खिले
कही जगह ही न मीली मेरे आशियाने को....

दबा के कब्र में सब चले गए ..दुवा न सलाम
जरा सी देर में क्या हो गया ज़माने को.......
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ये ज़ुबाँ हमसे सी नहीं जाती
ज़िन्दगी है कि जी नहीं जाती

एक आदत —सी बन गई है तू
और आदत कभी नहीं जाती

मयकशो मय ज़रूर है लेकिन
इतनी कड़वी कि पी नहीं जाती

मुझको ईसा बना दिया तुमने
अब शिकायत भी की नहीं जाती

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