Monday, March 8, 2010

पता धडकनों से चला है हमें ,
कोई प्यार करने लगा है हमें
उम्र भर से थी हमें जिसकी जुस्तजू
सुना है वही खोजता है हमें


एक अँधेरा लाख सितारे
एक निराशा लाख सहारे
सबसे बड़ी सौगात है जीवन
नादाँ है जो जीवन से हारे
बीते हुए कल की खातिर तुम
आने वाला कल ना खोना
जाने कौन कहा से आके
राहे तेरी फिर से सवारे
एक अँधेरा ............

नज़्म उलझी हुई है सीने में
मिसरे अटके हुए हैं होठों पर
उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तरह
लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नहीं
कब से बैठा हुआ हूँ मैं जानम
सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा

बस तेरा नाम ही मुकम्मल है
इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी

रचनाकार: गुलज़ार

मे उम्र भर न दे पाउँगा अब कोई जवाब
वो एक नजर मे इतने सवाल कर गए

किस तरह अदा कीजियेगा शुक्र इस लुत्फ़-ए-खास का ,
पुर्शिस है लेकिन पा-ए-सुखन दर्मया नहीं

पुर्शिस = वार्तालाप
पा-ए-सुखन = शब्दों का आदान प्र

कैसे कह दूँ कि मुलाकात नहीं होती है
रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है
जब भी मिलते हैं तो कहते हैं कैसे हो "शकील"
इस से आगे तो कोई बात नहीं होती है

दूर जा के बैठा है रूठ के मुझसे ,
बिना इश्क के ये अदब नहीं आता ...........

अब शौक से बिगाड़ की बाते किया करो ,
कुछ पा गए है आपके तर्ज-ए-बया से हम

काफी बस अरमान नहीं ,
कुछ मिलना आसान नहीं ,
दुनिया की मज़बूरी है ,
फिर तक़दीर जरुरी है ,
ये जो दुश्मन है ऐसे , दोनों राजी हो कैसे ,
एक को मनाओ तो दूजा रूठ जाता है ,
शीशा हो या दिल हो आखिर टूट जाता है .......

दोस्त मैं दामन बचाता किस तरह
दिल पे हस के तीर खाना ही पड़ा ,
उसके आगे सर झुकाना ही पड़ा ,

किस तरह वो सामने आइ न पूछ ,
वो हुस्न वो रानाई ना पूछ ,
और जलाता तो बुझाता किस तरह
दोस्त मैं दामन ........

चाहती थी के कर ले मेरे दिल पे राज ,
मैं भला आखे चुराता किस तरह
दोस्त मैं दामन ..........

अपनी आवाज़ की लर्ज़िश पे तो क़ाबू पा लूँ
प्यार के बोल तो होठों से निकल जाते है
अपने तेवर तो सँभालो कोई ये न कहे
दिल बदलते हैं तो चेहरे भी बदल जाते हैं।

मांगते तो जान भी लुटा देते उन पर ,
बिना मांगे दिल ले गए ये ठीक बात नहीं......!!!

हम ये नहीं कहते कि कोई उनके लिये दुआ ना मांगे,
बस इतना चाहते है कि कोई दुआ मे उनको ना मांगे..

तू न कातिल हो तो कोई और ही हो ,
तेरे कूचे की शहादत ही भली ................
-----ग़ालिब

"मीर" बहुत खीचती है यार के कूचे की जमीं ,
लहू उस खाक पे गिरना है मुक़र्रर अपना ........

बड़ी तैय्यारियो से हमने वक्त को छेडा है ,
हमारी जुस्तजू है के वक्त का पन्ना पलटा जाए .....


तेरा नाम लेने से सब जान जाते है मुझे,
मैं वो खोई चीज हू जिसका के पता तुम हो .....

तुम होते जो दुश्मन तो कोई बात ही क्या थी ,
अपनों को मनाना है जरा देर लगेगी .....

नजर न लग जाए उनके दस्त-ओ-बाजु को
ये लोग क्यों मेरे जख्म-ए-जिगर को देखते है ...
----ग़ालिब

dast-o-baazoo = hands & shoulders
delete 7/27/09
Aniruddha:
न लुटता दिन को तो, रात को क्यों बेखबर सोता ,
रहा खटका न चोरी का, दुआ देता हू रहजन(लुटेरे) को ....
------ग़ालिब
delete 7/20/09
Aniruddha:
सुनते है बहिश्त (जन्नत )की तारीफ सब दुरुस्त (तरफ)
पर खुदा करे की वो तेरी ही जल्वागाह हो ..
------ग़ालिब

mere paas se gujar kar mera haal tak na pucha ,
mai ye kaise man lu ke tum door ja ke roye ..

hamari awargi me kuch tumhara bhi dakhal hai faraj
tumhari yad aati hai to ghar accha nahi lagta

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