Wednesday, March 10, 2010

गुलज़ार की कुछ बहुत सुंदर पंक्तियां:

आनंद से:

मौत तू एक कविता है,
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको

डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे
ज़र्द सा चेहरा लिये जब चांद उफक तक पहुचे
दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के करीब
ना अंधेरा ना उजाला हो, ना अभी रात ना दिन

जिस्म जब ख़त्म हो और रूह को जब साँस आऐ
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको

मरासिम से (शायद) :

सुबह सुबह एक ख्वाब की दस्तक पर,
दरवाज़ा खोला और देखा,
सरहद के उस पार से कुछ मेहमान आये हैं,
आँखों से मानूस थे सारे,
चेहरे सारे सुने सुनाये,
पाँव धोये, हाथ धुलवाये,
आँगन में आसन लगवाये,
और तन्दूर पर मक्के के कुछ मोटे मोटे रोख पकाये,
पोटली में मेहमान मेरे,
पिछले सालों कि फसलों का गुड़ लाये थे,

आँख खुली तो देखा घर में कोई नहीं था,
हाथ लगा कर देखा तो तन्दूर अभी तक बुझा नहीं था,
और होठों पे मीठे गुड़ का ज़ायका अब तक चिपक रहा था,
ख्वाब था शायद, ख्वाब ही होगा,
सरहद पर कल रात सुना है चली थी गोली,
सरहद पर कल रात सुना है कुछ ख्वाबों का खून हुआ था।
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delete 4/19/08
Vaibhav Murhar:
गुलज़ार की कुछ छोटी छोटी बहुत सुंदर क्रतियां:

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नज़्म उलझी हुई है सीने में
मिसरे अटके हुए हैं होठों पर
उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तरह
लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नहीं
कब से बैठा हूँ मैं जानम
सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा

बस तेरा नाम ही मुकम्मल है
इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी

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वो ख़त के पुरज़े उड़ा रहा था
हवाओं का रुख़ दिखा रहा था

कुछ और भी हो गया नुमायाँ
मैं अपना लिखा मिटा रहा था

उसी का इमान बदल गया है
कभी जो मेरा ख़ुदा रहा था

वो एक दिन एक अजनबी को
मेरी कहानी सुना रहा था

वो उम्र कर रहा था मेरी
मैं साल अपने बढ़ा रहा था
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आदतन तुम ने कर िदये वादे
आदतन हम ने ऐतबार िकया
तेरी राहों में हर बार रुक कर
हम ने अपना ही इन्तज़ार िकया
अब ना माँगेंगे िजन्दगी या रब
ये गुनाह हम ने एक बार िकया

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delete 4/19/08
Vaibhav Murhar:
नज़्म उलझी हुई है सीने में
मिसरे अटके हुए हैं होठों पर
उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तरह
लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नहीं
कब से बैठा हूँ मैं जानम
सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा

बस तेरा नाम ही मुकम्मल है
इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी
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