काटो की चुभन पाई, फूलो का मजा भी ,
दिल दर्द के मौसम मे रोया भी हँसा भी ,
आने का सबब याद न जाने की खबर है ,
वो दिल मे रहा और उसे तोड़ गया भी
हर एक से मंजिल का पता पूछ रहा है ,
गुम राह हुआ साथ मेरे राह नवा भी
काटो की चुभन पाई, फूलो का मजा भी ,
दिल दर्द के मौसम मे रोया भी हँसा भी ,
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पत्थर के खुदा, पत्थर के सनम, पत्थर के ही इन्सां पाए हैं
तुम शहर-ऐ-मोहब्बत कहते हो, हम जान बचा कर आये हैं
बुतखाना समझते हो जिसको, पूछो न वहां क्या हालत है
हम लोग वहीँ से लौटे हैं , बस शुक्र करो लौट आये हैं
हम सोच रहें हैं मुद्दत से , अब उम्र गुजारें भी तो कहाँ
सहरा में ख़ुशी के फूल नहीं, शहरों में ग़मों के साए हैं
होठों पे तब्बसुम हल्का सा, आँखों में नमी सी अये 'फाकिर'
हम अहल-ऐ-मोहब्बत पर अक्सर, ऐसे भी ज़माने आये हैं
Saturday, March 6, 2010
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