Saturday, March 6, 2010

दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं
ज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं


उस दरीचे में भी अब कोई नहीं और हम भी
सर झुकाए हुए चुपचाप गुज़र जाते हैं


रास्ता रोके खड़ी है यही उलझन कब से
कोई पूछे तो कहें क्या कि किधर जाते हैं


नर्म आवाज़ भली बातें मोहज़्ज़ब लहजे
पहली बारिश में ही ये रंग उतर जाते हैं
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उसकी आँखों में है जादू- वादू ..टोना-वोना..जंतर -मंतर ..सब
चक्कू -वक्कू.........छुरिया-वुरिया .........खंजर -वंजर सब

मैं कब डूबूँगा ये फ़िक्र करते है .......
कश्ती-वश्ती..दरिया-वरिया..लंगर-वंगर ..सब

और तू जबसे गयी है छोड़ के मुजको ....
रूठ गए है मुजसे .बिस्तर-विस्तर..तकिया-वकिया..चद्दर-वद्दर .सब

ऐसा भी नहीं के वो खुश है ..बिछड़ के मुजसे ....
फीके पड़ गए उसके .बिंदिया -विन्दिया ..गहिने-वहीने...जेवर-बेवर सब

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