Wednesday, March 10, 2010

chandni raat me safed jode me jo tu aa jaye sach kahu
isa ke hath se gir jaye salib aur budhdha ka dhyan ukhad jaye

gair-mumkin hai ki haalata ki guththi suljhe ,
ahl-e-danish ne bahut soch ke uljhayi hai

ek najar pyar se jiski janib tum dekh lete ho
tamam umr fir us dil ki pareshani nahi jati

nadan hai waij jo karta hai ek kayamat ka charcha
yaha roj nigahe milti hai yaha roj kayamat hoti hai

ek najar pyar se dekha tumne
yu laga ek umr jee liye ham

jindagi ko sambhalkar rakhiye...............
jindagi maut ki amanat hai

इस जाम को तोड़ दू ....पर ये ख़याल है .....
शीशे की पालकी मैं कोई खुशजमाल है .......


हमसे भागा न करो दूर गजालो (हिरन का बच्चा ) की तरह
हमने चाहा है तुम्हे चाहने वालो की तरह

KAHA THA USSNE KI APNA BANA KE CHODEGA "FARAZ"
HUWA BHI YUN KE APNA BANA KE CHOD DIYA
*
ISS LIYE KOI ZAYDA NAHI RUKTA HAI YAHA
LOG KEHTE HAIN KI MERE DIL PE TERA SAYA HAI
*
MAIN USKA HUN, YE RAAZ TU WO JAAN GAYA HAI "FARAZ"
WO KIS KA HAI, YE EHSAAS WO HONE NAHIN DETA..!!
*
har gunah se tauba kar li meine
tujhe se ishq ke gunah ke baad
*
main baddua toh nahi de raha hun ussko magar
dua yahi hai usse ab koi mujhsa na mile
*
Ungliyan Aaj Bhi Isi Soch Main gum Hain "Faraz"
Usne Kaise Naye Hath Ko Thama Hoga !
*
taluq todta hun toh mukamal tod deta hun
jise main chod deta hun mukamal chod deta hun
yakin rakhta nahi main kisi kache taluq par
jo dhaga tutne wala ho usko tod deta hun
*
teri ibtada koi aur hai teri inteha koi aur hai !
teri baat humse hui kya tera muda koi aur hai !
hamen shonq tha badi der se ke tere shreek_e_safar bane !
tere sath chal ke khabar hui tera rasta koi aur hai !
tujhe fikar hai ke badal diya mujhe gardish_e_shobo roz ne !
kabhi khud se bhi toh sawal kar tu wahi hai ya koi aur hai

dil ki dehleej pe shamshir-bakaf baithe raho
kisko malum kab koi tamnna jage......

तेरे गम की डली उठाकर जुबा पे रख ली है देख मैंने ...
ये कतरा कतरा पिघल रही है मैं कतरा कतरा जी रहा हूँ

या इलाही क्या यही है हासिल-ए-तक़दीर-ए-इंसानी ,
जिधर देखो परेशानी परेशानी परेशानी .......

lo dekh lo ye ishq hai ....ye hijr{judai}..ye vasl{milan}
ab laut chale aao bahut kaam pada hai
javed akhtar ka hai

muje dekha to shaitaan bhi chilla pada .......
aadmi aadmi are baapre aadmi.....

ये दर्दे हिज्र, ये बेचारगी, ये महरूमी ,
दुआ की बेअसरी के सिवा कुछ भी नहीं .

गुरूरे इल्मो, हूनर फक्र ,अक्लो दानिशो फन,
जहुरे बेखबरी के सिवा कुछ भी नहीं .

जहाने शौक की नाकामियों तही दस्ती ,
हमारी कमंजोरी के सिवा कुछ भी नहीं ..

कटी रात सारी मेरी मैकदे में,
खुदा याद आया सवेरे-सवेरे

मय रहे मीना रहे गर्दिश में पैमाना रहे
मेरे साकी तू रहे आबाद मैखाना रहे

किस-किस तरह से मुझ को न रुस्वा किया गया
गैरों का नाम मेरे लहू से लिखा गया
- शहरयार

एक टूटी हुई जंजीर की फरियाद हैं हम
और दुनिया ये समझती है कि आजाद हैं हम
- मेराज फैजाबादी

उची इमारतो से मकान मेरा घीर गया ......
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए


हमने तन्हाईयो को महबूब बना रखा है .............
राख के डेर में शोलों को दबा रखा है ....

बेवफा भी हो सितमगर भी जफा पेशा भी
हम खुदा तुम को बना लेंगे तुम आओ तो सही
- मुमताज मिर्जा
आप को भूल जायें हम इतने तो बेवफा नहीं
आप से क्या गिला करें आप से कुछ गिला नहीं
- तस्लीम फाज्ली
आ के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही
कौन मानेगा कि हम में बेवफा कोई नहीं
- अहमद फराज
हम बा-वफा थे इसलिए नजरों से गिर गये
शायद तुम्हें तलाश किसी बेवफा की थी
- अज्ञात
बरसे बगैर ही जो घटा घिर के खुल गई
इक बेवफा का अहद-ए-वफा याद आ गया
- खुमार बाराबंकवी
फिर उसी बेवफा पे मरते हैं
फिर वही जिंदगी हमारी है
- मिर्जा गालिब
हमें भी दोस्तों से काम आ पड़ा यानी
हमारे दोस्तों के बेवफा होने का वक्त आया
- हरीचंद अख्तर
इन्सान अपने आप में मजबूर है बहुत
कोई नहीं है बेवफा अफसोस मत करो
- बशीर बद्र
तुम भी मजबूर हो हम भी मजबूर हैं
बे-वफा कौन है, बा-वफा कौन है
- बशीर बद्र
पी शौक से वाइज अरे क्या बात है डर की
दोजख तिरे कब्जे में है जन्नत तेरे घर की
- शकील
मैं मैकदे की राह से होकर गुजर गया
वरना सफर हयात का काफी तबील था
- अब्दुल हमीद ''अदम''
कुछ सागरों में जहर है कुछ में शराब है
ये मसअला है तश्नगी किससे
Reply
delete 9/28/08
Vaibhav Murhar:
नींद इस सोच से टूटी अक्सर
किस तरह कटती हैं रातें उसकी
- परवीन शाकिर

ऐसे मौसम भी गुजारे हम ने
सुबहें जब अपनी थीं शामें उसकी
- परवीन शाकिर

आंखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते
अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते
- अकबर इलाहाबादी

अब ये होगा शायद अपनी आग में खुद जल जायेंगे
तुम से दूर बहुत रह कर भी क्या पाया क्या पायेंगे
- अहमद हमदानी

ये खुले खुले से गेसू, इन्हें लाख तू संवारे
मेरे हाथ से संवरते, तो कुछ और बात होती
- आगा हश्र

कुछ तुम्हारी निगाह काफिर थी
कुछ मुझे भी खराब होना था
- मजाज लखनवी

न जाने क्या है उस की बेबाक आंखों में
वो मुंह छुपा के जाये भी तो बेवफा लगे
- कैसर उल जाफरी
किसी बेवफा की खातिर ये जुनूं फराज कब तलक
जो तुम्हें भुला चुका है उसे तुम भी भूल जाओ
- अहमद फराज
काम आ सकीं न अपनी वफायें तो क्या करें
इक बेवफा को भूल न जायें तो क्या करें
- अख्तर शीरानी
इस से पहले कि बेवफा हो जायें
क्यों न ऐ दोस्त हम जुदा हो जायें
- अहमद फराज
इस पुरानी बेवफा दुनिया का रोना कब तलक
आइए मिलजुल के इक दुनिया नई पैदा करें
- नजीर बनारसी

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