मुदात्तो बाद भी तेरा नाम ये असर रखता था.....
तेरा जिक्र मेरी पलखो को तर रखता था....
उसके रु-ब-रु धड़कने रुक सी जाती थी...
वो हसीन अपनी अदाओ में..जहर रखता था....
कीसी और से पूछ लेता था ...तेरा हाल अक्सर..
मैं तुजसे मिले बिना ही....तेरी खबर रखता था..
किसे सुनाऊ...अब ये गज़ले...अशार...ये नज्म...
वो शक्स गया.....जो कानो में जिगर रखता था...
तेरा अक्स नजर आता था जब ..दिवार पे हरसू..
मैं तब तन्हाई में हाथो में तबर रखता था.....
अब तो ''बादल '' उसका संगे-आस्तां भी नहीं नसीब...
जिसके जानू पे..... तू कभी सर रखता था ........
Saturday, March 6, 2010
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