Wednesday, March 10, 2010

जो साज से निकली है वो धुन सबने सुनी है ,
जो तार पे गुजरी है वो किस दिल को पता हैं ...

जाने क्यों देख रहे है ऐसी नजरो से लोग मुझे ,
जुनूँ मे जैसा होना चाहिए वैसा ही तो हू मे

KAHA THA USSNE KI APNA BANA KE CHODEGA "FARAZ"
HUWA BHI YUN KE APNA BANA KE CHOD DIYA
*
ISS LIYE KOI ZAYDA NAHI RUKTA HAI YAHA
LOG KEHTE HAIN KI MERE DIL PE TERA SAYA HAI
*
MAIN USKA HUN, YE RAAZ TU WO JAAN GAYA HAI "FARAZ"
WO KIS KA HAI, YE EHSAAS WO HONE NAHIN DETA..!!
*
har gunah se tauba kar li meine
tujhe se ishq ke gunah ke baad
*
main baddua toh nahi de raha hun ussko magar
dua yahi hai usse ab koi mujhsa na mile
*
Ungliyan Aaj Bhi Isi Soch Main gum Hain "Faraz"
Usne Kaise Naye Hath Ko Thama Hoga !
*
taluq todta hun toh mukamal tod deta hun
jise main chod deta hun mukamal chod deta hun
yakin rakhta nahi main kisi kache taluq par
jo dhaga tutne wala ho usko tod deta hun
*
teri ibtada koi aur hai teri inteha koi aur hai !
teri baat humse hui kya tera muda koi aur hai !
hamen shonq tha badi der se ke tere shreek_e_safar bane !
tere sath chal ke khabar hui tera rasta koi aur hai !
tujhe fikar hai ke badal diya mujhe gardish_e_shobo roz ne !
kabhi khud se bhi toh sawal kar tu wahi hai ya koi aur hai

zara na moom hua pyar ki harrart se
chatkh ke tuut gaya dil ka skhat aisa tha
*
achchi chizen lagengi aur achchi
darmiyan kuch kharab rakh dena
*
itna kuch toh hota hai
tum mere ho jao na
*
haq fateh-yaab[to win]mere khuda kyun nahi hua
tune kaha tha,tera kaha kyun nahi hua
jab hashr isi zamin pe uthaye gaye to phir
barpa yahin pe roz-e-jaza kyun nahi hua
vo sho'la saaz bhi isi basti ke log thay
unki gali mein raqs-e-hawa kyun nahi hua
*
ilaahi kyun nahi uthti kaymat mazra kya hai
hamare samne pehlu mein vo dushman ke baithe hai
nighahe shokh-0-chasm-e-shonq mein dar_parda chupti hai
ki vo chilman mein hai,nazdik hum chilman ke baithe hai
kisi ki shaamat ayegi,kisi ki jaan jayegi
kisi ki taak mein vo baam[khidki]par ban-th'an ke baithe hai
*

शाम-ए-तन्हाई में जब तेरी यादे जवाँ होती है ...
ऐसी खालिशो की तो सिर्फ मय ही दवा होती है ..

khataa to jab ho ke ham hal-e-dil kisi se kahe .
kisi ko chahte rahna koi khata to nahi .............
chandni raat me safed jode me jo tu aa jaye sach kahu
isa ke hath se gir jaye salib aur budhdha ka dhyan ukhad jaye

gair-mumkin hai ki haalata ki guththi suljhe ,
ahl-e-danish ne bahut soch ke uljhayi hai

ek najar pyar se jiski janib tum dekh lete ho
tamam umr fir us dil ki pareshani nahi jati

nadan hai waij jo karta hai ek kayamat ka charcha
yaha roj nigahe milti hai yaha roj kayamat hoti hai

ek najar pyar se dekha tumne
yu laga ek umr jee liye ham

jindagi ko sambhalkar rakhiye...............
jindagi maut ki amanat hai

इस जाम को तोड़ दू ....पर ये ख़याल है .....
शीशे की पालकी मैं कोई खुशजमाल है .......


हमसे भागा न करो दूर गजालो (हिरन का बच्चा ) की तरह
हमने चाहा है तुम्हे चाहने वालो की तरह

KAHA THA USSNE KI APNA BANA KE CHODEGA "FARAZ"
HUWA BHI YUN KE APNA BANA KE CHOD DIYA
*
ISS LIYE KOI ZAYDA NAHI RUKTA HAI YAHA
LOG KEHTE HAIN KI MERE DIL PE TERA SAYA HAI
*
MAIN USKA HUN, YE RAAZ TU WO JAAN GAYA HAI "FARAZ"
WO KIS KA HAI, YE EHSAAS WO HONE NAHIN DETA..!!
*
har gunah se tauba kar li meine
tujhe se ishq ke gunah ke baad
*
main baddua toh nahi de raha hun ussko magar
dua yahi hai usse ab koi mujhsa na mile
*
Ungliyan Aaj Bhi Isi Soch Main gum Hain "Faraz"
Usne Kaise Naye Hath Ko Thama Hoga !
*
taluq todta hun toh mukamal tod deta hun
jise main chod deta hun mukamal chod deta hun
yakin rakhta nahi main kisi kache taluq par
jo dhaga tutne wala ho usko tod deta hun
*
teri ibtada koi aur hai teri inteha koi aur hai !
teri baat humse hui kya tera muda koi aur hai !
hamen shonq tha badi der se ke tere shreek_e_safar bane !
tere sath chal ke khabar hui tera rasta koi aur hai !
tujhe fikar hai ke badal diya mujhe gardish_e_shobo roz ne !
kabhi khud se bhi toh sawal kar tu wahi hai ya koi aur hai

dil ki dehleej pe shamshir-bakaf baithe raho
kisko malum kab koi tamnna jage......

तेरे गम की डली उठाकर जुबा पे रख ली है देख मैंने ...
ये कतरा कतरा पिघल रही है मैं कतरा कतरा जी रहा हूँ

या इलाही क्या यही है हासिल-ए-तक़दीर-ए-इंसानी ,
जिधर देखो परेशानी परेशानी परेशानी .......

lo dekh lo ye ishq hai ....ye hijr{judai}..ye vasl{milan}
ab laut chale aao bahut kaam pada hai
javed akhtar ka hai

muje dekha to shaitaan bhi chilla pada .......
aadmi aadmi are baapre aadmi.....

ये दर्दे हिज्र, ये बेचारगी, ये महरूमी ,
दुआ की बेअसरी के सिवा कुछ भी नहीं .

गुरूरे इल्मो, हूनर फक्र ,अक्लो दानिशो फन,
जहुरे बेखबरी के सिवा कुछ भी नहीं .

जहाने शौक की नाकामियों तही दस्ती ,
हमारी कमंजोरी के सिवा कुछ भी नहीं ..

कटी रात सारी मेरी मैकदे में,
खुदा याद आया सवेरे-सवेरे

मय रहे मीना रहे गर्दिश में पैमाना रहे
मेरे साकी तू रहे आबाद मैखाना रहे

किस-किस तरह से मुझ को न रुस्वा किया गया
गैरों का नाम मेरे लहू से लिखा गया
- शहरयार

एक टूटी हुई जंजीर की फरियाद हैं हम
और दुनिया ये समझती है कि आजाद हैं हम
- मेराज फैजाबादी

उची इमारतो से मकान मेरा घीर गया ......
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए


हमने तन्हाईयो को महबूब बना रखा है .............
राख के डेर में शोलों को दबा रखा है ....

बेवफा भी हो सितमगर भी जफा पेशा भी
हम खुदा तुम को बना लेंगे तुम आओ तो सही
- मुमताज मिर्जा
आप को भूल जायें हम इतने तो बेवफा नहीं
आप से क्या गिला करें आप से कुछ गिला नहीं
- तस्लीम फाज्ली
आ के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही
कौन मानेगा कि हम में बेवफा कोई नहीं
- अहमद फराज
हम बा-वफा थे इसलिए नजरों से गिर गये
शायद तुम्हें तलाश किसी बेवफा की थी
- अज्ञात
बरसे बगैर ही जो घटा घिर के खुल गई
इक बेवफा का अहद-ए-वफा याद आ गया
- खुमार बाराबंकवी
फिर उसी बेवफा पे मरते हैं
फिर वही जिंदगी हमारी है
- मिर्जा गालिब
हमें भी दोस्तों से काम आ पड़ा यानी
हमारे दोस्तों के बेवफा होने का वक्त आया
- हरीचंद अख्तर
इन्सान अपने आप में मजबूर है बहुत
कोई नहीं है बेवफा अफसोस मत करो
- बशीर बद्र
तुम भी मजबूर हो हम भी मजबूर हैं
बे-वफा कौन है, बा-वफा कौन है
- बशीर बद्र
पी शौक से वाइज अरे क्या बात है डर की
दोजख तिरे कब्जे में है जन्नत तेरे घर की
- शकील
मैं मैकदे की राह से होकर गुजर गया
वरना सफर हयात का काफी तबील था
- अब्दुल हमीद ''अदम''
कुछ सागरों में जहर है कुछ में शराब है
ये मसअला है तश्नगी किससे
Reply
delete 9/28/08
Vaibhav Murhar:
नींद इस सोच से टूटी अक्सर
किस तरह कटती हैं रातें उसकी
- परवीन शाकिर

ऐसे मौसम भी गुजारे हम ने
सुबहें जब अपनी थीं शामें उसकी
- परवीन शाकिर

आंखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते
अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते
- अकबर इलाहाबादी

अब ये होगा शायद अपनी आग में खुद जल जायेंगे
तुम से दूर बहुत रह कर भी क्या पाया क्या पायेंगे
- अहमद हमदानी

ये खुले खुले से गेसू, इन्हें लाख तू संवारे
मेरे हाथ से संवरते, तो कुछ और बात होती
- आगा हश्र

कुछ तुम्हारी निगाह काफिर थी
कुछ मुझे भी खराब होना था
- मजाज लखनवी

न जाने क्या है उस की बेबाक आंखों में
वो मुंह छुपा के जाये भी तो बेवफा लगे
- कैसर उल जाफरी
किसी बेवफा की खातिर ये जुनूं फराज कब तलक
जो तुम्हें भुला चुका है उसे तुम भी भूल जाओ
- अहमद फराज
काम आ सकीं न अपनी वफायें तो क्या करें
इक बेवफा को भूल न जायें तो क्या करें
- अख्तर शीरानी
इस से पहले कि बेवफा हो जायें
क्यों न ऐ दोस्त हम जुदा हो जायें
- अहमद फराज
इस पुरानी बेवफा दुनिया का रोना कब तलक
आइए मिलजुल के इक दुनिया नई पैदा करें
- नजीर बनारसी
गुलज़ार की कुछ बहुत सुंदर पंक्तियां:

आनंद से:

मौत तू एक कविता है,
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको

डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे
ज़र्द सा चेहरा लिये जब चांद उफक तक पहुचे
दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के करीब
ना अंधेरा ना उजाला हो, ना अभी रात ना दिन

जिस्म जब ख़त्म हो और रूह को जब साँस आऐ
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको

मरासिम से (शायद) :

सुबह सुबह एक ख्वाब की दस्तक पर,
दरवाज़ा खोला और देखा,
सरहद के उस पार से कुछ मेहमान आये हैं,
आँखों से मानूस थे सारे,
चेहरे सारे सुने सुनाये,
पाँव धोये, हाथ धुलवाये,
आँगन में आसन लगवाये,
और तन्दूर पर मक्के के कुछ मोटे मोटे रोख पकाये,
पोटली में मेहमान मेरे,
पिछले सालों कि फसलों का गुड़ लाये थे,

आँख खुली तो देखा घर में कोई नहीं था,
हाथ लगा कर देखा तो तन्दूर अभी तक बुझा नहीं था,
और होठों पे मीठे गुड़ का ज़ायका अब तक चिपक रहा था,
ख्वाब था शायद, ख्वाब ही होगा,
सरहद पर कल रात सुना है चली थी गोली,
सरहद पर कल रात सुना है कुछ ख्वाबों का खून हुआ था।
------------------------
Reply
delete 4/19/08
Vaibhav Murhar:
गुलज़ार की कुछ छोटी छोटी बहुत सुंदर क्रतियां:

-------------
नज़्म उलझी हुई है सीने में
मिसरे अटके हुए हैं होठों पर
उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तरह
लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नहीं
कब से बैठा हूँ मैं जानम
सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा

बस तेरा नाम ही मुकम्मल है
इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी

---------------
वो ख़त के पुरज़े उड़ा रहा था
हवाओं का रुख़ दिखा रहा था

कुछ और भी हो गया नुमायाँ
मैं अपना लिखा मिटा रहा था

उसी का इमान बदल गया है
कभी जो मेरा ख़ुदा रहा था

वो एक दिन एक अजनबी को
मेरी कहानी सुना रहा था

वो उम्र कर रहा था मेरी
मैं साल अपने बढ़ा रहा था
---------------

आदतन तुम ने कर िदये वादे
आदतन हम ने ऐतबार िकया
तेरी राहों में हर बार रुक कर
हम ने अपना ही इन्तज़ार िकया
अब ना माँगेंगे िजन्दगी या रब
ये गुनाह हम ने एक बार िकया

----------------
Reply
delete 4/19/08
Vaibhav Murhar:
नज़्म उलझी हुई है सीने में
मिसरे अटके हुए हैं होठों पर
उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तरह
लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नहीं
कब से बैठा हूँ मैं जानम
सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा

बस तेरा नाम ही मुकम्मल है
इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी
Reply
dil khush huwa hai........
masjid-e-viran dekhkar
meri tarah khuda ka bhi
khana(ghar) kharab hai!!!!!!!!!

khuda bhi chup ke pine laga hai
ulzan si dil ko ho gayi..........
kal gaya tha jam mera
aaj botal kho gayi................

shamshir bakaf baithe raho dil k dahliz pe......
na jane kab kaunsi tamanna jage !!!!!!!!!!!!!!!!!!

fulo ko todne ki aadat nahi hamari..................
fulo ki tazgi ham saath lekar ghumte hai...........!!!

isase behtar bhi koi fariyad hai .........
ashq bankar aakhome dil aa jaye

ya mulla gar tere namaj me hai dum
to masjid hila k dikha
ya phir do ghut p
aur masjid ko hilti dekh!!!!!!!

ek muddat se aankh royi nahi....................
zil payab ho gayi shayad ,,,,,,,-parveen shakir

kho gayi hai mere mehboob k chehare ki chamak....
chand nikle to jara uski talashi lena.......!!!!!!

कुछ तो वैसे ही है रंगीन लब-ओ रुखसार की बात
और कुछ खून-ए-जिगर हम भी मिला देते है

oooO
(....).... Oooo....
.\..(.....(.....)...
..\_)..... )../....
.......... (_/.....
......
जहा आपके नक्श-ए-कदम
देखते है
खियाबा खियाबा(slowly slowly)
इरम(krupa) देखते है

oooO
(....).... Oooo....
.\..(.....(.....)...
..\_)..... )../....
.......... (_/.....

यह कहके आखरी शब-ए-शम्म हो गयी खामोश
कीसी की ज़िन्दगी लेने से ज़िन्दगी न मीली
Reply

firaq-e- yaar main jo gam milenge
to mere jaise hosle kam milenge
jahan sari duniya nigahae fer legi
wahan e dost tumhe sirf hum milenge

गम-ए-दुनिया को गम-ए-इश्क में शामिल करलो
नशा बढ़ता है शराबे जो शराबो में मिले .......

मेरे सिम्त पत्थर का आना तो ज़रूर था
क्यू की मैं अकेला ही गुनाह्गारो में बेकसूर था

mere maula mere aankho me samender de de
do char bundo se ab guzara nahi hota

बर्बाद गुलिस्ता करने को बस एक ही उल्लू काफी है.......
हर डाल पर उल्लू बैठा है अंजाम गुलिस्ता क्या होगा....... ??????

Kastoori-sa usne bana diya hai hamei.n;
Dil k kundal mei.n basa liya hai hamei.n;
Fir ab dekhiye gumshuda dil ki bekhudi;
Bas 'nvn'!wahin nahin kojta hai hamei.n.

bahut kimti hai tere ye badan ke libaj,
kahi kisi garib ke bete se pyar mat karna.....

Monday, March 8, 2010

मैं उनमत्त प्रेम की प्यासी हृदय दिखाने आयी हूँ
जो कुछ है, वह यही पास है, इसे चढ़ाने आयी हूँ

मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लायी
फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चली आयी

कैसे करूँ कीर्तन, मेरे स्वर में है माधुर्य नहीं
मन का भाव प्रकट करने को वाणी में चातुर्य नहीं

नहीं दान है, नहीं दक्षिणा खाली हाथ चली आयी
पूजा की विधि नहीं जानती, फिर भी नाथ चली आयी

चरणों पर अर्पित है, इसको चाहो तो स्वीकार करो
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है ठुकरा दो या प्यार करो
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है ठुकरा दो या प्यार करो .....
-----सुभद्रा कुमारी चौहान
मुझे क़दम-क़दम पर
चौराहे मिलते हैं
बाँहे फैलाए!!
एक पैर रखता हूँ
कि सौ राहें फूटतीं,
व मैं उन सब पर से गुज़रना चाहता हूँ;
बहुत अच्छे लगते हैं
उनके तज़ुर्बे और अपने सपने...
सब सच्चे लगते हैं;
अजीब-सी अकुलाहट दिल में उभरती है,
मैं कुछ गहरे में उतरना चाहता हूँ,
जाने क्या मिल जाए!!
मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक पत्थर में
चमकता हीरा है;
हर-एक छाती में आत्मा अधीरा है,
प्रत्येक सुस्मित में विमल सदानीरा है,
मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक वाणी में
महाकाव्य पीड़ा है,
पलभर में सबसे गुज़रना चाहता हूँ,
प्रत्येक उर में से तिर जाना चाहता हूँ,
इस तरह खुद ही को दिए-दिए फिरता हूँ,
अजीब है ज़िन्दगी!!
बेवकूफ़ बनने के ख़ातिर ही
सब तरफ़ अपने को लिए-लिए फिरता हूँ;
और यह सब देख बड़ा मज़ा आता है
कि मैं ठगा जाता हूँ...
ह्रदय में मेरे ही,
प्रसन्न-चित्त एक मूर्ख बैठा है
हँस-हँसकर अश्रुपूर्ण, मत्त हुआ जाता है,
कि जगत्...स्वायत्त हुआ जाता है।

--- गजानन माधव मुक्तिबोध
**********************************
कल माँ ने कहा
उसकी शादी तय हो गई कही ...........
मैं मुस्करा दिया |
पर रो दिया दिया कमरे मे जा कर .....
तब से मेरे लिए दुनिया है दो
एक कमरे के भीतर और एक कमरे के बाहर ........

-------दुष्यंत कुमार
**********************************
प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
सामने गियर से उपर
हुक से लटका रक्खी हैं
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी
बस की रफ़्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं…
झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया
टाँगे हुए है कई दिनों से
अपनी अमानत
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने
मैं भी सोचता हूँ
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा
और मैंने एक नज़र उसे देखा
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा -
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
वर्ना किसे नहीं भाएँगी?
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़िया
nagarjun ba
पता धडकनों से चला है हमें ,
कोई प्यार करने लगा है हमें
उम्र भर से थी हमें जिसकी जुस्तजू
सुना है वही खोजता है हमें


एक अँधेरा लाख सितारे
एक निराशा लाख सहारे
सबसे बड़ी सौगात है जीवन
नादाँ है जो जीवन से हारे
बीते हुए कल की खातिर तुम
आने वाला कल ना खोना
जाने कौन कहा से आके
राहे तेरी फिर से सवारे
एक अँधेरा ............

नज़्म उलझी हुई है सीने में
मिसरे अटके हुए हैं होठों पर
उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तरह
लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नहीं
कब से बैठा हुआ हूँ मैं जानम
सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा

बस तेरा नाम ही मुकम्मल है
इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी

रचनाकार: गुलज़ार

मे उम्र भर न दे पाउँगा अब कोई जवाब
वो एक नजर मे इतने सवाल कर गए

किस तरह अदा कीजियेगा शुक्र इस लुत्फ़-ए-खास का ,
पुर्शिस है लेकिन पा-ए-सुखन दर्मया नहीं

पुर्शिस = वार्तालाप
पा-ए-सुखन = शब्दों का आदान प्र

कैसे कह दूँ कि मुलाकात नहीं होती है
रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है
जब भी मिलते हैं तो कहते हैं कैसे हो "शकील"
इस से आगे तो कोई बात नहीं होती है

दूर जा के बैठा है रूठ के मुझसे ,
बिना इश्क के ये अदब नहीं आता ...........

अब शौक से बिगाड़ की बाते किया करो ,
कुछ पा गए है आपके तर्ज-ए-बया से हम

काफी बस अरमान नहीं ,
कुछ मिलना आसान नहीं ,
दुनिया की मज़बूरी है ,
फिर तक़दीर जरुरी है ,
ये जो दुश्मन है ऐसे , दोनों राजी हो कैसे ,
एक को मनाओ तो दूजा रूठ जाता है ,
शीशा हो या दिल हो आखिर टूट जाता है .......

दोस्त मैं दामन बचाता किस तरह
दिल पे हस के तीर खाना ही पड़ा ,
उसके आगे सर झुकाना ही पड़ा ,

किस तरह वो सामने आइ न पूछ ,
वो हुस्न वो रानाई ना पूछ ,
और जलाता तो बुझाता किस तरह
दोस्त मैं दामन ........

चाहती थी के कर ले मेरे दिल पे राज ,
मैं भला आखे चुराता किस तरह
दोस्त मैं दामन ..........

अपनी आवाज़ की लर्ज़िश पे तो क़ाबू पा लूँ
प्यार के बोल तो होठों से निकल जाते है
अपने तेवर तो सँभालो कोई ये न कहे
दिल बदलते हैं तो चेहरे भी बदल जाते हैं।

मांगते तो जान भी लुटा देते उन पर ,
बिना मांगे दिल ले गए ये ठीक बात नहीं......!!!

हम ये नहीं कहते कि कोई उनके लिये दुआ ना मांगे,
बस इतना चाहते है कि कोई दुआ मे उनको ना मांगे..

तू न कातिल हो तो कोई और ही हो ,
तेरे कूचे की शहादत ही भली ................
-----ग़ालिब

"मीर" बहुत खीचती है यार के कूचे की जमीं ,
लहू उस खाक पे गिरना है मुक़र्रर अपना ........

बड़ी तैय्यारियो से हमने वक्त को छेडा है ,
हमारी जुस्तजू है के वक्त का पन्ना पलटा जाए .....


तेरा नाम लेने से सब जान जाते है मुझे,
मैं वो खोई चीज हू जिसका के पता तुम हो .....

तुम होते जो दुश्मन तो कोई बात ही क्या थी ,
अपनों को मनाना है जरा देर लगेगी .....

नजर न लग जाए उनके दस्त-ओ-बाजु को
ये लोग क्यों मेरे जख्म-ए-जिगर को देखते है ...
----ग़ालिब

dast-o-baazoo = hands & shoulders
delete 7/27/09
Aniruddha:
न लुटता दिन को तो, रात को क्यों बेखबर सोता ,
रहा खटका न चोरी का, दुआ देता हू रहजन(लुटेरे) को ....
------ग़ालिब
delete 7/20/09
Aniruddha:
सुनते है बहिश्त (जन्नत )की तारीफ सब दुरुस्त (तरफ)
पर खुदा करे की वो तेरी ही जल्वागाह हो ..
------ग़ालिब

mere paas se gujar kar mera haal tak na pucha ,
mai ye kaise man lu ke tum door ja ke roye ..

hamari awargi me kuch tumhara bhi dakhal hai faraj
tumhari yad aati hai to ghar accha nahi lagta

Saturday, March 6, 2010

जब बांध सब्र का टूटेगा, तब रोएंगे....
अभी वक्त की मारामारी है,
कुछ सपनों की लाचारी है,
जगती आंखों के सपने हैं...
राशन, पानी के, कुर्सी के...
पल कहां हैं मातमपुर्सी के....
इक दिन टूटेगा बांध सब्र का, रोएंगे.....

अभी वक्त पे काई जमी हुई,
अपनों में लड़ाई जमी हुई,
पानी तो नहीं पर प्यास बहुत,
ला ख़ून के छींटे, मुंह धो लूं,
इक लाश का तकिया दे, सो लूं,....
जब बांध.....

उम्र का क्या है, बढ़नी है,
चेहरे पे झुर्रियां चढ़नी हैं...
घर में मां अकेली पड़नी है,
बाबूजी का क़द घटना है,
सोचूं तो कलेजा फटना है,
इक दिन टूटेगा......

उसने हद तक गद्दारी की,
हमने भी बेहद यारी की,
हंस-हंस कर पीछे वार किया,
हम हाथ थाम कर चलते रहे,
जिन-जिनका, वो ही छलते रहे....
इक दिन...

जब तक रिश्ता बोझिल न हुआ,
सर्वस्व समर्पण करते रहे,
तुम मोल समझ पाए ही नहीं,
ख़ामोश इबादत जारी है,
हर सांस में याद तुम्हारी है...
इक दिन...

अभी और बदलना है ख़ुद को,
दुनिया में बने रहने के लिए,
अभी जड़ तक खोदी जानी है,
पहचान न बचने पाए कहीं,
आईना सच न दिखाए कहीं!

इक दिन टूटेगा बांध सब्र का, रोएंगे....


निखिल आनंद गिरि
delete 7/8/09
Aniruddha:
सब कुछ थोड़े ही सूख जाता है
बच ही जाती है स्मृति की नन्ही बूंद
मिल ही जाता है प्रिय का लगभग खो गया पता
अलगनी में सूखते हुए कपड़ों पर बच ही जाती है
देह गंध की नम आँच
पायंचे के घुटनों पर रेंग ही आती है मुलायमियत

सब कुछ थोड़े ही ख़त्म हो जाता है
मृत्यु के बाद भी बचे रहते है अस्थि फूल
सूखे जलाशय के तलछट में जीवित रहती है एक अकेली मछली
विशाल मरुस्थल की छाती पर सूरज के खिलाफ
लहराता है खेजरी का पेड़

सब कुछ नहीं होता समाप्त
हमारे बाद भी बचा रहता है जीने का घमासान
भूख के बावजूद बच ही जाते है थाली में अन्न के टुकड़े
निकल ही आता है पुराने संदूक से जीर्ण होता प्रेम पत्र
सबसे हारे क्षणों में मिल ही जाता है दोस्त ठिकाना .

सब कुछ थोड़े ही मिट पाता है
उम्र के बावजूद भी बचे रहते है देह पर प्रेम निशान
जीवन के सबसे मोहक क्षणों में भी चिपका रहता है बीत जाने का भय

सब कुछ नहीं होता समाप्त।

कवयिता- मनीष मिश्र
delete 7/8/09
Aniruddha:
रचनाकार: सौदा




आमाल[१] से मैं अपने बहुत बेख़बर चला
आया था आह किसलिए और क्या मैं कर चला

है फ़िक्रे-वस्ल[२] सुब्ह' तो अंदोहे-हिज्र[३] शाम
इस रोज़ो-शब[४] के धंधे में अब मैं तो मर चला

निकले पड़े है जामा से कुछ इन दिनों रक़ीब
थोड़े से दम-दिलासे में कितना उफर चला

चलने का मुझको घर से तिरे कुछ नहीं है ग़म
औरों से गो मैं इक-दो क़दम पेशतर[५] चला

क्या इस चमन में आन के ले जायेगा कोई
दामन को मेरे सामने गुल झाड़कर चला

भेजा है वो पयाम मैं उस शोख़ को कि आज
कर ख़िज़्रे-राह[६] मर्ग[७] को पैग़ाम्बर[८] चला

तूफ़ाँ भरे था पानी जिन आँखों के सामने
आज अब्र[९] उनके आगे ज़मीं करके तर चला

'सौदा' रखे था यार से यक-मू[१०] नहीं ग़रज़
ऊधर[११] खुली जो ज़ुल्फ़, इधर दिल बिखर चला
delete 7/7/09
Aniruddha:
पत्थर के खुदा, पत्थर के सनम, पत्थर के ही इन्सां पाए हैं
तुम शहर-ऐ-मोहब्बत कहते हो, हम जान बचा कर आये हैं

बुतखाना समझते हो जिसको, पूछो न वहां क्या हालत है
हम लोग वहीँ से लौटे हैं , बस शुक्र करो लौट आये हैं

हम सोच रहें हैं मुद्दत से , अब उम्र गुजारें भी तो कहाँ
सहरा में ख़ुशी के फूल नहीं, शहरों में ग़मों के साए हैं

होठों पे तब्बसुम हल्का सा, आँखों में नमी सी अये 'फाकिर'
हम अहल-ऐ-मोहब्बत पर अक्सर, ऐसे भी ज़माने आये हैं

'सुदर्शन फाकिर'
गर्दे-राह हो जाते है कभी मेअराज़ भी
पल में chin जाते है तख्तो-ताज भी ...

न जाने कब कहा कैसे क्या कर डाले ..
वक़्त जैसा है भला कोई करिश्मासाज भी ..

तुजसे राबता क्या बढा.., हुवा ये अंजाम
अदावत पे उतर आये मेरे दमसाज भी

हमारा ही दील चुराकर हमीसे रूपोशी ..
कुछ अच्छे नहीं है ये आपके मिजाज़ भी ..

मंजिल पे आकर सारे रहगुजर है हैरान ...
यही से हुवा था सफ़र का आगाज़ भी...

ये इश्को-हिज्रो-वस्ल बहोत हो गए मिया...
लाजिम है के करो कुछ कामकाज भी...

रेख्ता के उस्तादों में है ये भी नाम शामिल ..
जरा रखो लोगो 'बादल' का लिहाज भी
*********************************
बादशाहों को फकीरों की औकात देता है......
ये वक़्त भी कैसे कैसे तजुर्बात देता है......

कमजोर को क्यू समजते हो मिया कमजोर ..
प्यादा कभी-कबार वजीरों को मात देता है...

संदल सी महकती है मेरे हातो की लकीरे ...
वो शख्स जब भी मेरे हातो में हात देता है....

हम भी मुफलिस है.,कभी जायेंगे उसके दर पे..
सुना है वो महर-ए-नजर बड़ी खैरात देता है ..

उसके हिसाब का अलग ही अंदाज है ''बादल''
सौ शबे हिज्र के बदले एक वस्ल की रात देता है ...
Newton in Romantic mood!

" Love can neither be created nor be destroyed; only it can transfer
from
One girlfriend to another girlfriend with some loss of money. "



first law:

"a boy in love with a girl, continue to be in love with her and a girl
in love with a boy, continue to be in love with him, until and unless
any external agent(brother or father of the gal) comes into play and
break the legs of the boy."



second law:

" the rate of change of intensity of love of a girl towards a boy is
directly proportional to the instantaneous bank balance of the boy and
the direction of this love is same as increment or decrement of the
bank balance."



third law:

"the force applied while proposing a girl by a boy is equal and
opposite
to the force applied by the girl while using her sandals....
uncle kabhi toh reply karo
mauj dar mauj tere Gam kii shafaq khilatii hai
mujhe is sil-silaa-e-rang pe qaabuu bhii nahii.n

न काबे में ..न कलीसे में..,न हरम की पनाहों में ..
सुकून मिलता है ग़र कही... तो उसकी बाहों में ...

अंदाजे-दरयाफ्त क्या कहू उसका ''बादल''..
खैरियत भी पूछते है तो..निगाहों निगाहों में..

काबा-अल्लाह का घर
कलीसा-church
हरम -मंदिर

दरयाफ्त -पुछताछ enquiry
जब कभी उसके जानिब मेरी नजर जाती है
वो खुशजमाल ...कलेजे में उतर जाती है....

माहो-महर भी देखने को तरसते है उसे..
वो जिस रोज़ बन-ठन के सवर जाती है ...


खुद-ब-खुद कदम उसके पीछे निकलते है..
वो खिरामा-खिरामा कुछ इस कदर जाती है...


छोड़ के फूलोको भवरे मंडराते है उसपे ...
वो जब खोलके जुल्फे-मुअम्बर जाती है..

एहतियातन जुहद रखना दील पे ''बादल''
उसको देखकर धड़कने ठहर जाती है....


khushjamal-beautyful
maho-mahar--moon and sun
खिरामा-खिरामा -slowly slowly
मुअम्बर--सुगन्धित
एहतियातन--carefuly
जुहद -control

sab gunaahon kaa iqaraar karane lagen
is qadar Khubasuurat sazaayen na de.....

ये मेरी आखरी शब् तो नहीं मैखाने में
कांपते हांथों से क्यों जाम दिया जाता है .......


जब अपनी सांस ही दरपर्दा हम पे वार करे
तो फिर जहाँ में कोई किस पे ऐतबार करे

वफ़ा की राह में कितने ही मोड़ आयेंगे
बता ! ये उम्र कहाँ तेरा इन्तजार करे

हर एक अपने लिए मेरे जख्म गिनता है
मेरे लिए भी कोई हो जो मुझसे प्यार करे

बहुत दिनों मैं जमाने की ठोकरों में रहा
कहो जमाने से अब मेरा इन्तजार करे

सब अपनी प्यास में गुम हैं यहाँ तो ए साकी
कोई नहीं जो तेरे मैकदे से प्यार करे

Shayad hum khud ko sambhal lete magar
Tumhara hausla dena hi humein maar gaya

"AGAR WO PUCH LE HUMSE TUMHE KIS BAAT KA GHAM HAI'
TO KIS BAAT KA GHAM HAI AGAR WO PUCH LE HUMSE"

Zaruri nahi ki tum bhi wafa nibhao hamse,
Hum to teri bewafai par bhi marte hai

भीगी हुई दहलीज पे इक शाम को बैठे
हम दिल के धड़कने का सबब सोंच रहे थे...........

दिल धड़कने का सबब याद आया
वो तेरी याद थी अब याद आया .........

उन के ख़त की आरजू है उन के आमद का ख़याल
किस कदर फैला हुआ है कारोबार-ऐ-इंतज़ार..............

सुनते है बहिश्त (जन्नत )की तारीफ सब दुरुस्त (तरफ)
पर खुदा करे की वो तेरी ही जल्वागाह हो ..
------ग़ालिब

दीवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की......
लोगो ने मेरे सेहन से रास्ते बना लिये.....

सेहन-आँगन
khuda jane kiska hai ......par bhahot badhiya sher hai....
लडकियां उडाती हैं पतंगे
लेकिन चरखी कोई और पकड़ता है
वो डोर पकड़ती है
पतंग को छुट्टी कोई और देता है

उनकी पतंग उडती भी है
आकाश में लेकिन घरवाले
सब सीख देते हैं
पेच ना लड़ाने की सीख देते हैं

वो पतंग तो उडाती हैं
तंग कोई और ही बांधता है
या वो उडाती हैं
पतंगे जो कटके छत पे आती हैं i

उनकी पतंग उडती भी है
आकाश में लेकिन घरवाले
आगाह करते हैं
पेच ना लड़ाने की सीख देते हैं

जो लडकियां पतंग उडाती हैं
तो उनसे ये भी कहा जता है कि
भले कोई ढील दे
तुम्हें अपनी डोर खीचके ही रखनी है

हाँ लड़किया पतंग उडाती है
पर क्या पता उसे आसमान निगलता
या धरती खाती है
शाम होते गगन में आवारा पतंगे रहती हैं
"कोई रिश्ता बनाकर मुतमईन होना नहीं अच्छा
मोहब्बत आखरी दम तक ताल्लुक आजमाती है ........... "

तेरे बगल में किताब है वाईज....
मेरे बगल में बोतल...
तेरा खुदा ही नशा है...
मेरा नशा है खुदा ....

तेरी लतीफ़ निगाहों की खास जुम्बिश ने
बना दिया तेरी फितरत का राजदार मुझे.....

कभी यकबयक तवज्जो , कभी दफ़तन तगाफुल
मुझे आजमा रहा है कोई रुख बदल बदल के ..........

यकबयक=दफतन=अचानक
मुझे यकी सा आ गया के यही है मंजिल मेरी ,
सरे राह जब किसी ने मुझे दफ़तन पुकारा .............
-----शकील बदायुनी
आप के दम से तो दुनिया का भरम है कायम
आप जब हैं तो ठिकाने की ज़रूरत क्या है.............

पब्लिक हो या प्रेमिका, दोनों एक समान।
रीझ जाएं किस पर कहाँ, यह जानें भगवान।
यह जानें भगवान, देखते सब हैं नखरे।
निकल जाय जब काम, न दिखते उनके चेहरे।
कभी बिठाये शीश, कभी देती है फ्री किक।
रखना पूरा ध्यान, प्रेमिका हो या पब्लिक।

जम्खो से बदन गुलज़ार सही ;पर अपने शिकस्ता तीर गिनो ......
खुद तरकशवाले कह देंगे ये बाज़ी किसने हारी है.......

मुदात्तो बाद भी तेरा नाम ये असर रखता था.....
तेरा जिक्र मेरी पलखो को तर रखता था....

उसके रु-ब-रु धड़कने रुक सी जाती थी...
वो हसीन अपनी अदाओ में..जहर रखता था....

कीसी और से पूछ लेता था ...तेरा हाल अक्सर..
मैं तुजसे मिले बिना ही....तेरी खबर रखता था..

किसे सुनाऊ...अब ये गज़ले...अशार...ये नज्म...
वो शक्स गया.....जो कानो में जिगर रखता था...

तेरा अक्स नजर आता था जब ..दिवार पे हरसू..
मैं तब तन्हाई में हाथो में तबर रखता था.....

अब तो ''बादल '' उसका संगे-आस्तां भी नहीं नसीब...
जिसके जानू पे..... तू कभी सर रखता था ........
इश्क फितरत है मेरी, दिल तबाह और सही ,
तू नहीं, और सही, और नहीं और सही
गम का एक दौर और सही ...........
एक गुनाह और सही ........

मरीज-ए-इश्क पे रहमत खुदा की .....
मरज़ बढ़ता गया जू जू दवा की.....

परतव-ए-खुर से मिलती है शबनम को फ़ना कि तालीम ,
मैं भी हू तेरी इनायत कि एक नजर होने तक ...
परतव-ए-खुर = सूरज कि पहली किरण

aake masjid me imam hua kab se meer ,
kal tak to vo yahi kharabat nashi tha ....

uth uth kar maszidon se namazi chale gaye
dahshatgaro ke hath me islam rah gaya........

tujhe akele paDhuuN koii ham-sabaq na rahe
maiN chaahtaa huuN ki tujh par kisii ka haq na rahe

tujhse bichhDaa to pasand aa gayii be-tartiibii
isse pahle meraa kamraa bhii Gazal jaisaa thaa

माशूका से क्यू शिकायत करते हो मिया ''बादल''
जिन्दगी से भला.......... गिला कैसा??

aake masjid me imam hua kab se meer ,
kal tak to vo yahi kharabat nashi tha ....

तू न कातिल हो तो कोई और ही हो ,
तेरे कूचे की शहादत ही भली ................
-----ग़ालिब

इलाजे दर्दे दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता
तुम अच्छा कर नहीं सकते मैं अच्छा हो नहीं सकता
तुम्हें चाहूँ, तुम्हारे चाहने वालों को भी चाहूँ
मेरा दिल फेर दो मुझ से यह सौदा हो नहीं सकता

वफाओ मे मेरी इतना असर तो आये,
जिन्हे ढूंढती है नज़रे वो नज़र तो आये,

हम आ जायेंगे पलक झुकने से पहले,
तुमने याद किया ये खबर तो आये.....

मैकदे में किसने कितनी पी खुदा जाने
मैकदा तो मेरी बस्ती के कई घर पि गया ...

बस एक बार प्यार से देखा था उसने मेरी जानिब (तरफ),
बस इतनी ही हकीकत है बाकि तो सब फ़साने है

बड़ा लगाव था इस गली से निगाहों को ,
और रौशनी सबसे पहले यही हलाल हुई ....
--------दुष्यंत कुमार (साये मे धूप )


जिन्दगी तुने मुझे कब्र से कम दी है जगह
पाँव फैलोओं तो दीवार से सर लगता है ............

बंदगी हम ने छोंड दी है 'फ़राज़'
क्या करें लोग जब खुदा हो जाएँ .............

कहा तो था उसने के...अपना बना के छोडेगा ''फ़राज़''
हुवा भी यु के...... अपना बना के छोड़ दिया......

वो आये बज्म मे ,इतना तो मीर ने देखा ,
फिर उसके बाद चिरागों मे रौशनी न रही ........
-------मीर

हम जानते हैं दिल में तुम्हारे नहीं हैं हम
जो ख़त तुम्हारी आँखों में थे हम ने पढ़ लिए ............

चलो अच्छा हुआ काम आ गई दीवानगी अपनी
वरना हम ज़माने भर को समझाने कहाँ जाते.........

मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के माने
ये तेरी सदादिली मार न डाले मुझको ...............

उसे तो तोड़ना आता था उसने तोड़ दिया
वो जनता ही नहीं दिल की अहमियत क्या है ........

तुम्हे पाने की कोशिश में कुछ इतना खो चुका हूँ मैं
अगर तू मिल भी जाये तो अब मिलने का गम होगा ........

देख के मुझ को दुनिया वाले कहने लगे हैं दीवाना
आज वहां है इश्क जहां कुछ खौफ नहीं रुसवाई का.............

मैं नज़र से पी रहा था तो ये दिल ने बद-दुआ दी
तेरा हाथ जिंदगी भर कभी जाम तक न पहुंचे.........

दुश्मनों के सितम का खुअफ़ नहीं
दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं...........

कोई आये 'शकील' देखे ये जुनूँ नहीं तो क्या है
के उसी के हो गए हम जो न हो सका हमारा.................

वही कारवां वही रास्ते वही जिंदगी वही मरहले
मगर अपने-अपने मुकाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं...........
वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है
ये अगर रस्मों, रिवाज़ों से बगावत है तो है

सच को मैने सच कहा, जब कह दिया तो कह दिया
अब ज़माने की नज़र में ये हिमाकत है तो है

कब कहा मैनें कि वो मिल जाये मुझको, मै उसे
ग़ैर न हो जाये वो बस इतनी हसरत है तो है

जल गया परवाना तो शम्मा की इसमे क्या खता
रात भर जलना-जलाना उसकी किस्मत है तो है

दोस्त बन कर दुश्मनों-सा वो सताता है मुझे
फिर भी उस ज़ालिम पे मरना अपनी फ़ितरत है तो है

दूर थे और दूर हैं हरदम ज़मीनों-आसमाँ
दूरियों के बाद भी दोनों में कुर्बत है तो है
******************************
सब में शामिल हो मगर सबसे जुदा लगती हो ..
सिर्फ हमसे ही नहीं खुदसे भी जुदा लगती हो ..

आँख उठती है न जुकती है कीसी की खातिर ....
साँस चढ़ती है न रुकती है कीसी के खातिर ...
जो कीसी दर पे ठहरे वो हवा लगती हो ....
सिर्फ हमसे ही नहीं खुदसे भी जुदा लगती हो ..

जुल्फ लहराए तो आँचल में छुपा लेती हो ....
होठ थर्राए तो दातो में दबा लेती हो .....
जो कभी खुलके न बरसे वो घटा लगती हो ....
सिर्फ हमसे ही नहीं खुदसे भी जुदा लगती हो ..

जागी जागी नज़र आती हो ..न..सोयी सोयी
तुम तो हो अपने ही ख्यालात में खोयी खोयी
कीसी मायूस मुसव्विर की दुवा लगती हो ...
सिर्फ हमसे ही नहीं खुदसे भी जुदा लगती हो ..

शायर-साहिर लुधियानवी
************************************
मेरी खामोशियों में भी फसाना ढूंढ लेती है
बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है
हकीकत जिद किए बैठी है चकनाचूर करने को
मगर हर आंख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है
न चिडि़या की कमाई है न कारोबार है कोई
वो केवल हौसले से आबोदाना ढूंढ लेती है
समझ पाई न दुनिया मस्लहत मंसूर की अब तक
जो सूली पर भी हंसना मुस्कुराना ढूंढ लेती है
उठाती है जो खतरा हर कदम पर डूब जाने का
वही कोशिश समन्दर में खजाना ढूंढ लेती है
जुनूं मंजिल का, राहों में बचाता है भटकने से
मेरी दीवानगी अपना ठिकाना ढूंढ लेती
जूनून के नगमे वफाओ के गीत गाते हुए ,
हमारी उम्र कटी जख्म-ए-दिल को छुपाते हुए ,
दुनिया मे हमने एक तुम्ही को चाहा था
तुम्हे ख्याल भी न आया ये दिल दुखाते हुए


वो ज़हर देता तो दुनिया की नजरो मे आ जाता ,
सो उसने ये किया की वक्त पे दुआ न दी ..........

jis tarh hasrat liye is jahan se uthta hai koi ,
kucha-e-dilbar se hamne safar kiya
---meer

Mizaj-e-Ashiqui Samjhne Ka Ju Saliqa Hota “pathan"
Kasam Khuda Ki Zamana Dosra Taj Mehal Daikhta.........

Main usey kaisay dil se juda karun
jo meri umr bhar ki talash hai...............

kyu rakhu mai ab apne kalaam mai syahi,
jab koi armaan dil mai machalta hi nahi.
kashish to bahut thi mere pyar mai magar,
kya kare koi patthar dil pighalta hi nahi

Hamari Nakamion ke ik wajah ye bhe thei "pathan”
Ke jo bhee cheez maangi Nayab Maangi.........

tod de "tasbeeh" ko is niyat se "pathan"
kya gin gin naam lena uska jo deta hai bepanah..........

WO AyE MeRi KaBar pAr ApNe RaQeEb kE SaTh "pathan"
KaUn KeHtA hAi Ke MuSaLmAn Ko JaLAyA NanIN jAta........

कहा जो मैंने उनसे ...के .... शब को टहलना नहीं ठीक.....
हसके वो कहने लगे "बादल"....के चाँद निकलता है रात में!

Us ne is nazakat se mere honto ko chuma "pathan"
Aftaari bhi ho gayi aur roza bhi na toota.........

itni shiddat se mujhe usne ZHAkm diye hain "pathan"
Itni shiddat se tu maine use chaha bhi nhi tha.........

Is Dafa To Barishen Rukti Hi Nahin "pathan"
Hum Ne Kya Ansoo Piye Ke Saare Mosam Hi Ro Padhe...


मेरा सवाल फिर भी वहीं का वहीं रहा
माना जवाब तेरा बहुत लाजवाब है.............

vo meri har baat se ikhtilaf karta hai
chhup chuup ke magar mera tawaf karta hai,
kahin koi aur shaks mere qareeb na ho jaaye,
issi liye vo sab ko mere khilaaf karta hai

सितम तो ये है ..वो खुद सुखनशनास (one who appretiate poetry) नहीं......
वो एक शख्स जो मुजे ...शायर बना गया ....

तुझ से माँगूँ मैं तुझी को की सब कुछ मिल जाए
सौ सवालों से यही एक सवाल अच्छा है .......

अपनी बेवफाई पे मलाल आता तो होगा,
उन्हें मेरा ख्याल आता तो होगा ,
पा लेते होंगे वो दिल पे काबू ,
उन्हें भी ये कमाल आता तो होगा .

jaam jab bhi peeta hu muh se kahta hu 'bismillah'
koun kahta hai rindo ko khuda yad nahi .......
--------ek kavi sammelan me suna
मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हू
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हू

एक जंगल है तेरी आँख में
मैं ज़हा राह भूल जाता हू

तू किसी रेल सी गुज़रती है
मैं किसी पूल सा थरथराता हू

हर तरफ ऐतराज़ होता है
मैं ज़ब रौशनी में आता हू

एक बाजू उखड गया है जबसे
और ज्यादा वज़न उठता हू

मैं तुजे भूलने के कोशिश में
तेरे और करीब आता हू .....-दुष्यंत कुमार
***************************

तंग आ चुके है कशमकश ए जिन्दगी से हम
ठुकरा ना दे जहां को कहीं बेदिली से हम

मायुसी ए -माओल - ए मोहब्बत ना पूछीये
अपनो से पेश आये है बेगानगी से हम

लो आज हमने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उम्मीद
लो अब कभी गिला न करेंगे कीसी से हम

हम गमजदा है लाये कहा से ख़ुशी के गीत
देंगे वही जो पाएंगे इस जिन्दगी से हम

उभरेंगे एक बार अभी दील के वलवले
गो दब गए है बार-ए-गम -ए-जिंदगी से हम

ग़र जिंदगी में मिल गए फिर इत्तफाक से...
पूछेंगे अपना हाल तेरे बेबसी से हम ....

अल्लाह रे फरेब-ए-मशीयत की आज तक
दुनिया के जुल्म सहते रहे खामुशी से हम

sahir ludhiyanvi
******************************
अश्क आंखों में कब नहीं आता
लहू आता है जब नहीं आता

होश जाता नहीं रहा लेकिन
जब वो आता है तब नहीं आता

दिल से रुखसत हुई कोई ख्वाहिश
गिरिया कुछ बे-सबब नहीं आता

इश्क का हौसला है शर्त वरना
बात का किस को धब नहीं आता

जी में क्या-क्या है अपने ऐ हमदम
हर सुखन ता-ब-लब नहीं आता
---मीर तकी मीर
Yahee soch kar us ki har baat ko sach mana hai
"pathan"
K itnay khubsoorat Lub jhoot kesay bolenge gay....

tumhe bhi yad nahi aur mai bhi blaya,
wo lamha kitna hasin tha ,magar fazul gaya..........!

यु ही कट जाती है उम्र राह देखते देखते ,
जाने वाले कभी लौट के नहीं आते ..........

बहुत देर कर दी जनाजा उठाने में,
कहीं हवा सर से कफ़न ना उठा दे....

kal hi ek dost se bewafa hue "pathan"
ab itni jaldi koi ummid-e-wafa- humse na kare.

निगाहे भी मिला करती है ,दिल भी दिल से मिलता है ,
मगर एक चाहने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है

ibadat bhi khuda hai,bagavat bhi khuda he
khuda baagi kahi hai,kahi baagi khuda hai.

ek woh the jo khusi ki talash me mar jate the,
ek hum hai jo gham-e-zindagi mein jiye ja rahe hai

इश्क कहते है जिसे काम निकम्मों का नहीं ........
वस्ल एक उम्र की मेहनत का सिला होता है ...........

खुश शक्ल (अच्छी सूरत वाला ) भी है वो ......
ये अलग बात है मगर
हमको जहीन (समजदार) लोग
हमेशा अज़ीज़ थे ..........
---जावेद अख्तर

HazaaroN tammanaoN ko dil me dabaa rakha hai,
Bas ek teri chahat hai aur tujhse hi chipa rakha hai.

Lahoo saara jo ashq-e-dariya meN baha rakha hai,
Bas ek katra teri maaNg ki khaatir bacha rakha hai...!!

न कोई पैगाम ....न गुफतगू-ए- खैरियत....न बाद-ओ-बारा की बाते
दोस्ती का सलीका ''बादल ''.......कोई उनसे सीखे ...!!!!

dhundne se to us jaise hasin hajaro milenge 'badal'
par wo jafa ka andaj ,wo dagabaji,wo bewafai n milengi......

Tumko naraz he rehna hai to kuch baat karo "pathan"
Ke chup rehnay say mohabbat ka gumaan hota hai.......

Juz is ke aur Isbaat-e-vafa kyaa hai
khuda se puuchh baithe ham khuda kyaa hai......

इक अमीर शख़्स ने हाथ जोड़ के पूछा एक ग़रीब से
कहीं नींद हो तो बता मुझे कहीं ख़्वाब हों तो उधार दे.

"पूछा किसी ने यह किसी कामिल फक़ीर से
यह महरो माह हक़ ने बनाए हैं काहे के
वह सुन के बोला बाबा, ख़ुदा तुम को ख़ैर दे
हम तो न चाँद समझें, न सूरज ही जानते
बाबा हमें तो ये नज़र आती हैं रोटियाँ"

जाने क्या कह दिया डूबने वाले ने समंदर से ,
लहरे आज भी साहिल पे सर पटक के रोती है

Zaruri nahi ki tum bhi wafa nibhao hamse,
Hum to teri bewafai par bhi marte hai

तेरा वस्ल ए मेरी दिलरुबा नहीं मेरी किस्मत तो क्या हुआ
मेरी महजबीं यही कम है क्या तेरी हसरतों का तो साथ है .......

hame tumse shikayat nahi hai ,
nibhana to koi ravayat nahi hai .
हम जो डूबे नहीं अब तक तो बड़े ताव में हो
तुम ये क्यों भूल गए तुम भी इसी नाव में हो

कांच का जिस्म लिए बैठे हो चौराहे पर
तुमको ये भी एहसास नहीं कि पथराव में हो

मिलने चलिए तो हथेली पर जरे जां लेकर
आज क्यों कोई कमी यारो के बर्ताव में हो

सस्ते दामो में कहीं बिकते हैं जवाहर पारे
दिल का सौदा है जरा चढ़ते हुए भाव में हो

कैसा भरपूर था वार उसकी नजर का ''पथिक''
न कसक दिल कि मिटे और न कमी घाव में हो..
*
एक पल में एक सदी का मजा हम से पूछिये ........
दो दीन की ज़िन्दगी का मजा हम से पूछिये ....

भूले है रफ्ता -रफ्ता उन्हें मुदत्तो में हम.............
किस्तों में खुदकुशी का मजा हमसे पूछिये ....

आगाज-ए-आशिकी का मजा आप जानिए
अंजाम-ए-आशिकी का मजा हमसे पूछिये...

जलते दियो में जलते घरो जैसी जौ कहा
सरकार, रौशनी का मजा हमसे पूछिये

हसने का शौक हमको भी था आप की तरह
हसिये ,मगर हसी का मजा हमसे पूछिये ....

kist-installment....,paRT
jau-roshni

shayar-khumar barabkavi
**********************************

Roz taaron ko numaaish main khalal padta hai
Chand pagal hai andhere main nikal padta hai

Main samandar hun kudali se nahi kat sakta
Koi fawwara nahi hun jo ubal padta hai

Kal wahan chand uga karte the har aahat par
Apne raste main jo viraan mahal padta hai

Na ta aaruf na ta alluk hai magar dil aksar
Naam sunta hai tumhara uchhal padta hai

Uski yaad aayi hai saanson zara aahista chalo
Dhadkano se bhi ibadat main khalal padta hai

rahat indori
दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं
ज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं


उस दरीचे में भी अब कोई नहीं और हम भी
सर झुकाए हुए चुपचाप गुज़र जाते हैं


रास्ता रोके खड़ी है यही उलझन कब से
कोई पूछे तो कहें क्या कि किधर जाते हैं


नर्म आवाज़ भली बातें मोहज़्ज़ब लहजे
पहली बारिश में ही ये रंग उतर जाते हैं
***************************
उसकी आँखों में है जादू- वादू ..टोना-वोना..जंतर -मंतर ..सब
चक्कू -वक्कू.........छुरिया-वुरिया .........खंजर -वंजर सब

मैं कब डूबूँगा ये फ़िक्र करते है .......
कश्ती-वश्ती..दरिया-वरिया..लंगर-वंगर ..सब

और तू जबसे गयी है छोड़ के मुजको ....
रूठ गए है मुजसे .बिस्तर-विस्तर..तकिया-वकिया..चद्दर-वद्दर .सब

ऐसा भी नहीं के वो खुश है ..बिछड़ के मुजसे ....
फीके पड़ गए उसके .बिंदिया -विन्दिया ..गहिने-वहीने...जेवर-बेवर सब
कभी कहा ना कीसी से तेरे फ़साने को.....
न जाने कैसे खबर हो गयी ज़माने को....

सुना है गैर के महफिल में तुम न जाओगे
कहो तो आज सजा लु गरीब खाने को.......

दुवा बहार की मांगी तो इतने फुल खिले
कही जगह ही न मीली मेरे आशियाने को....

दबा के कब्र में सब चले गए ..दुवा न सलाम
जरा सी देर में क्या हो गया ज़माने को.......
************************************
ये ज़ुबाँ हमसे सी नहीं जाती
ज़िन्दगी है कि जी नहीं जाती

एक आदत —सी बन गई है तू
और आदत कभी नहीं जाती

मयकशो मय ज़रूर है लेकिन
इतनी कड़वी कि पी नहीं जाती

मुझको ईसा बना दिया तुमने
अब शिकायत भी की नहीं जाती
mauj dar mauj tere Gam kii shafaq khilatii hai
mujhe is sil-silaa-e-rang pe qaabuu bhii nahii.n

उनकी याद आई है सासों जरा आहिस्ता चलो ,
धडकनों से भी इबादत मे खलल पड़ता है ......

मजा आ रहा है दिलबर की दिल्लगी का ,
नजरे भी हमी पे है और पर्दा भी हमी से है

jaha jaha dekhu waha hai maujood
ab to dard hi allah lag raha hai muze......

kaha to tha usne ke apna bana ke chodega faraz
aur huwa bhi yu ke apna bana ke chod diya

itna royega vo meri lash se lipat ke 'faraz'
ye khabar hoti to kab ke mar gaye hote

Mouddaton baad mila to mera naam poach liya "pathan",
bichertay waqt jis ne kaha tha tum yaad bohat aao gay!!!!!

Ab tu dard sehne ke itnee aadat ho gaye hai ”pathan”
Ab jab kabhe dard nahi milta to dard hota hai......

TERI IS BEWAFAI PE FIDa HOTI HA JAAN APNI “pathan"
KHUDA JANE TUJH MAIN WAFA HOTI TO KYA HOta......

अब कुछ और दिन तो लगेंगे जख्म-ए-दिल को भरने मे ,
वो जो अक्सर याद आते थे अब कभी कभी याद आते है

Bhoole Hai Rafta Rafta Unhe Muddaton Me Hum
Kishton Me Khudkhushi Ka Maza Humse Puchiye~*~

Tumhari dunia me hm jese hazaaron hen "kaveri"
Hum hi pagal the jo tumhay paa k itraanay lagay.

mere sabr ki inteha to dekho "pathan"
wo roya meri bahon mein kisi aur ka naam leke.

Zindagi to apnay hi Qadmon pe chalti hai "pathan"..,
Auron k $aharay to Janazay utha kartay hain..!

Hum Tّ Agaz-E-Mّhaككat Maiٌ Hi Lut Gay "pathan"~*~
~*~Lّg Kehtay Haiٌ K Aٌjam كura Hّta Hai...!!!

Hum pe faqat ilzaam k hum hain zuban daraz.......
hum ne to bus kaha tha hamain tum se pyar hai...

एक एक कतरे का देना पड़ा हिसाब मुझे
खूने जिगर मेरे यार की अमानत था

चोट पे चोट खाए जाए ,
चुपचाप यु ही जिए जाए ,
और छिपाए जख्म जो हरा है ,
यही परंपरा है |

क्या नजाकत है के आरीज उनके नीले पड़ गए
हमने तो बोसा लीया था ख्वाब में तस्वीर का

लो देख लो ये इश्क है ..,ये वस्ल है ...ये हिज्र.......
अब लौट चले ..आओ बहोत काम पड़ा है.....
-जावेद अख्तर

Yeh wafa to un dinon ki baat hay "pathan"
Jab makaan kachy or log sachay hoa krty thy..

जख्म सहने की तो ''बादल'' ....... फितरत ही थी अपनी............
लज्जत-ए-इश्क तो............... नमकपाश से मिला !!
Titliyon ko pakarna us ki aadat thi,
Har ek se larna us ki aadat thi,

Woh jis ko tanhai se darr lagta tha,
Magar tanhai mein rehna us ki aadat thi,

Woh mere har jhoot se khush hota,
Jise hamesha sach bolne ki aadat thi,

Woh ek aanso bhi girne per khafa hota tha,
Jise tantai mein rone ki aadat thi,

Woh kehta tha ke mujhe bhool jaye ga,
Jise meri har baat yaad rakhne ki aadat thi,

Hamesha maafi mangne ke gar se
Roz galtiyan kerna us ki aadat thi,

Woh jo dil o jaan nichaver kerta tha mujh per,
Magar choti si baat per rothna us ki aadat thi,

Hum us ke saath chal diye yeh jante huwe bhi,
Raah mein har ek ko chor dena us ki aadat thi
जीवन को कुछ इस तरह जिया अब तक
कोई भी पश्चात्ताप नही मुझको
कुछ अच्छा या कि बुरा ही इस जग में
परिभाषाओं को पढ़ कर नही किया
हमने चुल्लू से नहीं,ओक से ही
इस जीवन का भरपूर अमृत पिया
जीवन में यदि वरदान न पाया है
तो मिला कभी अभिशाप नहीं मुझको

कुछ शकुन या कि अपशकुन नहीं देखा
क्षण जैसा आया, जीवन में ढाला
दिखलाई देती मृत्यु मगर उसका,
अंदेशा था, आंतक नहीं पाला
निश्चित आना है मौत मगर उसकी
सुन पड़ती है पदचाप नहीं मुझको

गाली या स्तुति, कांटें हॉं या की कुसुम
सब सहज भाव से ही स्वीकारा है
सब एक स्वाद जीवन का फर्क नहीं
है हंसी मधुर या आंसू खारा है
मन की अब ऐसी स्तिथि है जब लगता
कुछ पुण्य नहीं कुछ पाप नहीं मुझको!

~~चंद्रसेन विराट~~
प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
सामने गियर से उपर
हुक से लटका रक्खी हैं
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी
बस की रफ़्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं…
झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया
टाँगे हुए है कई दिनों से
अपनी अमानत
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने
मैं भी सोचता हूँ
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा
और मैंने एक नज़र उसे देखा
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा -
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
वर्ना किसे नहीं भाएँगी?
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़िया
---बाबा नागार्जुन
तू न कातिल हो तो कोई और ही हो ,
तेरे कूचे की शहादत ही भली ................
-----ग़ालिब


maanga karenge ab se dua hijr-e-yar ki ,
kyo ki dushmani jo hai asar ko dua ke sath

तेरे चेहरे को भूल जाना तो बेहद आसान था ,
मुश्किल तो तब हुई जब तेरा मिजाज याद आया ....


jaam jab bhi peeta hu muh se kahta hu 'bismillah'
koun kahta hai rindo ko khuda yad nahi .......
--------ek kavi sammelan me suna


कहा तो था उसने के अपना बना के छोडेगा ''फ़राज़ ''
और हुवा भी यु....के अपना बना के छोड़ दिया...

हुस्न को बेनकाब होना था ,
शौक को कामयाब होना था ,
कुछ उसकी निगाह काफिर थी ,
कुछ मुझे भी ख़राब होना था ........

तेरी निगाह-ए-शौक से वो शराब पी मैंने ,
तमाम उम्र फिर न होश का दावा किया मैंने .....

मांगते तो जान भी लुटा देते उन पर ,
बिना मांगे दिल ले गए ये ठीक बात नहीं......!!!

हम ये नहीं कहते कि कोई उनके लिये दुआ ना मांगे,
बस इतना चाहते है कि कोई दुआ मे उनको ना मांगे...

मंजिल भी उसकी थी ,रास्ता भी उसका था .
एक मैं अकेला था काफिला भी उसका था ,
राह मे साथ चलने की मर्जी भी उसकी थी ,
फिर राह मे साथ छोड़ने का फैसला भी उसका था ,
आज मैं अकेला हू तो दिल सवाल करता है ,
लोग तो सब उसके थे क्या खुदा भी उसका था .....

hamary baad nahi ayega usay chahat ka aisa mazaa nadir,
wo logon se khud kehta phiry ga muhjy chaho uski tarhan....

वो ज़हर देता तो दुनिया की नजरो मे आ जाता ,
सो उसने ये किया की वक्त पे दुआ न दी ..........

Zaruri nahi ki tum bhi wafa nibhao hamse,
Hum to teri bewafai par bhi marte ha

ये जो मोहलत जिसे कहते है उम्र ,
देखो तो इंतजार सा है कुछ ........
----मीर

जूनून के नगमे वफाओ के गीत गाते हुए ,
हमारी उम्र कटी जख्म-ए-दिल को छुपाते हुए ,
दुनिया मे हमने एक तुम्ही को चाहा था
तुम्हे ख्याल भी न आया ये दिल दुखाते हुए

फासला पत्थर को भी बना देता है चाँद,
चाँद जब भी चमके हाथ बढा के देखो,,
फासला नजरो का धोका भी हो सकता है ,
चाँद जब भी चमके हाथ बढा के देखो .....

किससे कहें की छत की मुंडेरों से गिर पड़े ,
हमने तो खुद ही पतंग उडाई थी शौकिया

साहिल के तलबगार ये बात जान ले ,
दरिया-ए-मुहब्बत के किनारे नहीं होते

Na koi vaadaa na koi yaqin, na koi ummeed
magar hamein to teraa intazaar karnaa thaa..
~Firaq~
कोई आरज़ू नहीं है, कोई मु़द्दा नहीं है,
तेरा ग़म रहे सलामत, मेरे दिल में क्या नहीं है ।

कहां जाम-ए-ग़म की तल्ख़ी, कहां ज़िन्दगी का रोना,
मुझे वो दवा मिली है, जो निरी दवा नहीं है ।

तू बचाए लाख दामन, मेरा फिर भी है ये दावा,
तेरे दिल में मैं ही मैं हंू, कोई दूसरा नहीं है ।

तुम्हें कह दिया सितमगर, ये कुसूर था ज़बां का,
मुझे तुम मुआफ़ कर दो, मेरा दिल बुरा नहीं है ।

मुझे दोस्त कहने वाले, ज़रा दोस्ती निभा ले,
ये मताल्बा है हक़ का, कोई इल्तिजा नहीं है ।

ये उदास-उदास चेहरे, ये हसीं-हसीं तबस्सुम,
तेरी अंजुमन में शायद, कोई आईना नहीं है ।

मेरी आंख ने तुझे भी, बाख़ुदा ‘शकील‘ पाया,
मैं समझ रहा था मुझसा, कोई दूसरा नहीं है ।
---शकील बदायुनी

तल्ख़ी: कड़वाहट,
मताल्बा: सच्चाई,
इल्तिजा: मुस्कान ।
**********************************
ग़ैर ले महफ़िल में बोसे जाम के
हम रहें यूँ तश्नालब पैग़ाम के

ख़त लिखेंगे गर्चे मतलब कुछ न हो
हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के

रात पी ज़म-ज़म पे मय और सुबह-दम
धोए धब्बे जाम-ए-एहराम के
जाम-ए-एहराम =हज की पोशाक

शाह की है ग़ुस्ल-ए-सेहत की ख़बर
देखिये दिन कब फिरें हम्माम के

इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के
काटो की चुभन पाई, फूलो का मजा भी ,
दिल दर्द के मौसम मे रोया भी हँसा भी ,

आने का सबब याद न जाने की खबर है ,
वो दिल मे रहा और उसे तोड़ गया भी

हर एक से मंजिल का पता पूछ रहा है ,
गुम राह हुआ साथ मेरे राह नवा भी

काटो की चुभन पाई, फूलो का मजा भी ,
दिल दर्द के मौसम मे रोया भी हँसा भी ,
***************************
पत्थर के खुदा, पत्थर के सनम, पत्थर के ही इन्सां पाए हैं
तुम शहर-ऐ-मोहब्बत कहते हो, हम जान बचा कर आये हैं

बुतखाना समझते हो जिसको, पूछो न वहां क्या हालत है
हम लोग वहीँ से लौटे हैं , बस शुक्र करो लौट आये हैं

हम सोच रहें हैं मुद्दत से , अब उम्र गुजारें भी तो कहाँ
सहरा में ख़ुशी के फूल नहीं, शहरों में ग़मों के साए हैं

होठों पे तब्बसुम हल्का सा, आँखों में नमी सी अये 'फाकिर'
हम अहल-ऐ-मोहब्बत पर अक्सर, ऐसे भी ज़माने आये हैं
नादाँ है वाइज जो करता है एक क़यामत का चर्चा ,
यहाँ रोज निगाहे मिलती है यहाँ रोज क़यामत होती है . .........

सौ सौ उम्मीदे बंधती है एक एक निगाह पर,
मुझको न प्यार से देखा करे कोई .................

बस इतनी सी बात है जिस पे जाती है जान हमारी ,
कि उन पर जाँ निसारों मे नाम हमारा आता है.

"AGAR WO PUCH LE HUMSE TUMHE KIS BAAT KA GHAM HAI'
TO KIS BAAT KA GHAM HAI AGAR WO PUCH LE HUMSE"

हर रोज़ दिल उदास होता है और शाम गुज़र जाती है "pathan"..
एक रोज़ शाम उदास होगी और हम गुज़र जायंगे ..!

बड़ी तैय्यारियो से हमने वक्त को छेडा है ,
हमारी जुस्तजू है के वक्त का पन्ना पलटा जाए .....

न लुटता दिन को तो, रात को क्यों बेखबर सोता ,
रहा खटका न चोरी का, दुआ देता हू रहजन(लुटेरे) को ....

नजर न लग जाए उनके दस्त-ओ-बाजु को
ये लोग क्यों मेरे जख्म-ए-जिगर को देखते है ...

अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गये हैं
आते हैं मगर दिल को दुखाने नहीं आते......
अहबाब=दोस्त

मुझे यकी सा आ गया के यही है मंजिल मेरी ,
सरे राह जब किसी ने मुझे दफ़तन पुकारा .............
-----शकील बदायुनी
कभी यकबयक तवज्जो , कभी दफ़तन तगाफुल
मुझे आजमा रहा है कोई रुख बदल बदल के ..........

होता है शौक वस्ल का इंकार से ज्यादा ,
कब तुझे दिल से उठाते है, तेरी नहीं से हम ......
----मीर
"मीर" बहुत खीचती है यार के कूचे की जमीं ,
लहू उस खाक पे गिरना है मुक़र्रर अपना ........

कुछ तो मजबुरिया रही होगी ,
यु ही कोई बेवफा नहीं होता ,
अपना दिल भी टटोल के देखो ,
फासला दिल का बेवजह नहीं होता ... तेरी तलब में..... जला डाले आशियाने तक..... कहाँ रहूँ बता .......तेरे दिल में घर बनाने तक....... . .