Saturday, March 6, 2010

मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हू
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हू

एक जंगल है तेरी आँख में
मैं ज़हा राह भूल जाता हू

तू किसी रेल सी गुज़रती है
मैं किसी पूल सा थरथराता हू

हर तरफ ऐतराज़ होता है
मैं ज़ब रौशनी में आता हू

एक बाजू उखड गया है जबसे
और ज्यादा वज़न उठता हू

मैं तुजे भूलने के कोशिश में
तेरे और करीब आता हू .....-दुष्यंत कुमार
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तंग आ चुके है कशमकश ए जिन्दगी से हम
ठुकरा ना दे जहां को कहीं बेदिली से हम

मायुसी ए -माओल - ए मोहब्बत ना पूछीये
अपनो से पेश आये है बेगानगी से हम

लो आज हमने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उम्मीद
लो अब कभी गिला न करेंगे कीसी से हम

हम गमजदा है लाये कहा से ख़ुशी के गीत
देंगे वही जो पाएंगे इस जिन्दगी से हम

उभरेंगे एक बार अभी दील के वलवले
गो दब गए है बार-ए-गम -ए-जिंदगी से हम

ग़र जिंदगी में मिल गए फिर इत्तफाक से...
पूछेंगे अपना हाल तेरे बेबसी से हम ....

अल्लाह रे फरेब-ए-मशीयत की आज तक
दुनिया के जुल्म सहते रहे खामुशी से हम

sahir ludhiyanvi
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अश्क आंखों में कब नहीं आता
लहू आता है जब नहीं आता

होश जाता नहीं रहा लेकिन
जब वो आता है तब नहीं आता

दिल से रुखसत हुई कोई ख्वाहिश
गिरिया कुछ बे-सबब नहीं आता

इश्क का हौसला है शर्त वरना
बात का किस को धब नहीं आता

जी में क्या-क्या है अपने ऐ हमदम
हर सुखन ता-ब-लब नहीं आता
---मीर तकी मीर

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