Friday, June 1, 2012

तेरी तलब में..... जला डाले आशियाने तक..... कहाँ रहूँ बता .......तेरे दिल में घर बनाने तक....... . . खरीद सकते तो उसे ............अपनी जिंदगी दे कर खरीद लेते "फ़राज"..... पर कुछ लोग कीमत से नही .........किस्मत से मिला करते है.............. . . . . . --अहमद फ़राज़

Saturday, August 13, 2011

नहीं है हमारे मुकद्दर में रोशनी........... तो ना सही ................
फिर भी खिड़की खोलो...............कुछ हवा तो आये .............
.
.
.ख़ुदा नहीं न सही..... आदमी का ख़्वाब सही...............
कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिये..............
.
.कुछ ऐसे भी हादसे होते है जिंदगी में "फ़राज़"...
इंसान बच तो जाता है पर ज़िंदा नहीं रहता ...........

हमारी आवारगी में कुछ तुम्हारा भी दखल है "फ़राज़"
तुम्हारी याद आती है तो घर अच्छा नहीं लगता .....

अब इसलिये भी कोई ज़्यादा नही रुकता है यहाँ
लोग कहते है मेरे दिल पे तेरा साया है ........




मुद्दते गुजरी तेरी याद भी न आई हमे,
और हम भूल गए हो तुम्हे ऐसा भी नहीं........
.

मकतबे इश्क (इश्क की पाठशाला ) का यह निराला उसूल देखा ................
उसको छुट्टी ना मिली जिसको के सबक याद हुआ .............
.
.बहोत अजीब है ये बंदिशे......मुहब्बत की 'फ़राज़'
न उसने कैद में रक्खा ........न हम फरार हुए ......

एक भूल है ....जो अक्सर याद आती है 'बादल'
और एक याद है ....जो भूलकर भी भूली नहीं जाती..!!
.

तुमको नाराज ही रहना है तो कुछ बात करो "फ़राज़",
यु चुप रहने से मुहब्बत का गुमाँ होता है ..

ये और बात है की वो वफ़ा न कर सका,
मगर कमबख्त ने जो वादे किये वो गज़ब के थे.............
.

मेरे दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है ,
जो भी गुजरा है उसने लूटा है ..........

मैं उम्र भर न दे सका 'अदम' कोई जवाब,
वह इक नजर में, इतने सवालात कर गये......................
.
तुम्हे भी याद नहीं और मै भी भूल गया ...............
वो लम्हा कितना हसीन था मगर फिजूल गया ......

क्या क्या ना हुआ जुनूं में हमसे मत पूछिए ...........
उलझे कभी जमीं से तो कभी आसमा से हम

अब नज़ा का आलम है मुझ पर ......तुम अपनी मोहब्बत वापस लो
जब कश्ती डूबने लगती है ..........तो बोझ उतारा करते हैं..........
(नज़ा == अनबन, लड़ाई)
.

चलो अच्छा हुवा के इश्क़ में मग्लूब हुए ....'बादल'
सुना है कामयाबी इंसान को मगरूर बना देती है..........


ऐ नामावर (postman ) तू ही बता .......तुने तो देखे होंगे ..........
कैसे होते है वो खत ............जिनके के जवाब आते है ..............
.
.

ये सोच कर उसकी हर बात को सच माना है "फ़राज़"
के इतने ख़ूबसूरत लब भला झूठ कैसे बोलेंगे ..............

खुश शक्ल (अच्छी सूरत वाला ) भी है वो ...... ये अलग बात है मगर .........
हमको जहीन (समझदार) लोग ..........हमेशा अज़ीज़ थे ..........
.

तमाम उम्र हम वफा के गुनहगार रहे,
यह और बात है कि हम आदमी तो अच्छे थे.............
.
.

"मीर" बहुत खीचती है यार के कूचे की जमीं ,
लहू उस खाक पे गिरना है मुक़र्रर अपना ........

काम सब फिजूल है .............जो सब करते है .............
हम कुछ नहीं करते है और ........गजब करते है ...........
.
.
.
.
राहत इन्दौरी

वही कारवां......... वही रास्ते ....... .. वही ज़िन्दगी............. वही मरहले..........
मगर अपने-अपने मुक़ाम पर....... .कभी तुम नहीं...... कभी हम नहीं.............
.
.
.
..
शकील

अब इसलिये भी कोई ज़्यादा नही रुकता है यहाँ
लोग कहते है मेरे दिल पे तेरा साया है ............

हमारी आवारगी में कुछ तुम्हारा भी दखल है "फ़राज़"
तुम्हारी याद आती है तो घर अच्छा नहीं लगता .........

कुछ ऐसे भी हादसे होते है जिंदगी में "फ़राज़"...
इंसान बच तो जाता है पर ज़िंदा नहीं रहता .........

ये सोच कर तस्बीह (माला) तोड़ दी मैंने "फराज" ,
क्या गिन गिन नाम लेना उसका जो बेहिसाब देता है ...........

छोड़ा न रश्क(Jealousy) ने कि तेरे घर का नाम लूँ
हर एक से पूछता हूँ कि जाऊँ किधर को मैं....
.

रोज कहता हूँ न जाउँगा घर उनके
रोज उस कूचे में इक काम निकल आता है
.

जिन्दगी अपनी जब इस शक्ल से गुजरी 'गालिब',
हम भी क्या याद करेंगे कि खुदा रखते थे...........

ऐ समंदर........... तुझे मै जानता हूँ लेकिन .................
वो आखें ज्यादा गहरी है..... जिनमे मै डूब जाता हूँ

माना कि तुम गुफ्तगू के फन में माहिर हो "फ़राज़" |
वफ़ा के लफ्ज़ पे अटको तो हमें याद कर लेना ||

रोटी सस्ती कर दो तो कुछ बात बने
मोबाइल सस्ते करने से, क्या होगा.....

तुमको नाराज ही रहना है तो कुछ बात करो "फ़राज़",
यु चुप रहने से मुहब्बत का गुमान होता है ............

इलाजे दर्दे दिल तुम से मेरे मसीहा हो नहीं सकता
तुम अच्छा कर नहीं सकते मैं अच्छा हो नहीं सकता

तुम्हें चाहूँ, तुम्हारे चाहने वालों को भी चाहूँ
मेरा दिल फेर दो मुझ से यह सौदा हो नहीं सकता..

मेरा उस शहर-ऐ-अदावत में बसेरा है "फ़राज़"
जहाँ लोग सजदो में भी लोगों का बुरा चाहते है ......

जब मैकदा छुटा तो फिर अब क्या जगह की क़ैद
मस्जिद हो, मदरसा हो, कोई खानक़ाह(आश्रयस्थल ) हो

सुनते है बहिश्त (जन्नत )की तारीफ सब दुरुस्त (तरफ)
पर खुदा करे की वो तेरी ही जल्वागाह हो ..

------ग़ालिब

या इलाही क्या यही है हासिल-ए-तक़दीर-ए-इंसानी ,
जिधर देखो परेशानी परेशानी परेशानी .......

फ़रिश्ते से बेहतर है इंसान बनना..
मगर उसमे लगती है मेहनत ज्यादा...

अपनी बेवफाई पे मलाल आता तो होगा,
उन्हें मेरा ख्याल आता तो होगा...............
पा लेते होंगे वो दिल पे काबू ,
उन्हें भी ये कमाल आता तो होगा .............
.

दिन सलीके से उगा, रात ठिकाने से रही
दोस्ती अपनी भी कुछ रोज़ ज़माने से रही

चंद लम्हों को ही बनाती हैं मुसव्विर आँखें
जिंदगी रोज़ तो तस्वीर बनाने से रही.


सभी कुछ है बस तुम नहीं हो प्यारे ,
और तुम नहीं हो तो कुछ भी नहीं है प्यारे ......

बहुत तल्ख़ थी वो बात जो उसने कही थी ,
बात तो भूल गया पर याद है लहजा उसका..........

तल्ख़= कडवी

नहीं आती जब उनकी याद तो बरसो नहीं आती ,
और जब वो याद आते है तो अक्सर याद आते है ....

अच्छा है दील के पास रहे...पासबाने अकल..
लेकिन कभी कभी ..उसे तनहा भी छोड़ दे....
--इकबाल

इसी में इश्क की किस्मत बदल भी सकती थी ..
जो वक़्त बीत गया मुझ को आज़माने में !

कुछ मोहब्बत का नशा था पहले हम को "फ़राज़" !
दिल जो टूटा तो नशे से मोहब्बत हो गयी !!

हमने तो सोचा था की अश्कों की किश्तें चुक गयी ,
मगर कल रात एक तस्वीर ने फिर से तकाज़ा कर दिया...........

बहुत आसान था तेरे चेहरे को भूल जाना ,
मुश्किल तो तब हुई जब तेरा मिजाज याद आया

खोजने से उस जैसे हजारो हसीन चेहरे मिलेंगे ,
मगर वो जलाने का अंदाज .........वो बेवफाई ...........वो अदा कहा मिलेगी ......

ये और बात कि मन्ज़िल पे हम पहुँच न सके
मगर ये क्या कम है कि राहों को छान बैठे हैं........

जीस्त में क्या क्या गवाया...इसका गम न कर 'बादल '
एक रोज़ .........तो जीस्त भी गवानी पड़ेगी ...!!

जीस्त = life

आता है दाग-ए-हसरते दिल का शुमार याद...
मुझसे मेरे गुनाहो का हिसाब ऐ खुदा न मांग.


कल मिला वक़्त तो जुल्फे तेरी सुलझा लूँगा,
आज उलझा हूँ ज़रा वक़्त को सुलझाने में....

बंदगी हमने छोड़ दी "फ़राज़"
क्या करें लोग जब खुदा हो जाएँ !!

मुदते गुज़रीं तेरी याद भी आई ना हमें
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं......

ये संगदिलों की दुनिया है , ज़रा संभल के चलना...
यहाँ पलकों पे बिठाया जाता है, नज़रों से गिराने के लिए .........!

दिल में अब यूँ तेरे भूले हुये ग़म आते हैं
जैसे बिछड़े हुये काबे में सनम आते हैं

इक इक कर के हुये जाते हैं तारे रौशन
मेरी मन्ज़िल की तरफ़ तेरे क़दम आते हैं

रक़्स-ए-मय तेज़ करो, साज़ की लय तेज़ करो
सू-ए-मैख़ाना सफ़ीरान-ए-हरम आते हैं

कुछ हमीं को नहीं एहसान उठाने का दिमाग
वो तो जब आते हैं माइल-ब-करम आते हैं

और कुछ देर न गुज़रे शब-ए-फ़ुर्क़त से कहो
दिल भी कम दुखता है वो याद भी कम आते हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

जाने क्यों देख रहे है ऐसी नजरो से लोग मुझे ,
जुनूँ मे जैसा होना चाहिए वैसा ही तो हू मे ....................


मुझे गुमान है के चाहा है बहुत ज़माने ने मुझे...
मै अज़ीज़ तो सब को हूँ मगर ज़रूरतो की तरह......!!!

तेरी तलब में जला डाले आशियाने तक
कहाँ रहूँ मैं तेरे दिल में घर बनाने तक

--अहमद फ़राज़

पोंछ कर अश्क अपनी आँखों से मुस्कुअराओ तो कोई बात बने,
सर झुकाने से कुछ नहीं होगा सर उठाओ तो कोई बात बने"

कितना आसाँ था तेरे हिज्र में मरना जानाँ
फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते ..........

किसी को न पाने से ज़िन्दगी ख़तम नहीं होती ''फ़राज़ ''
लेकिन किसी को पा कर खो देने से कुछ बाकी नहीं रहता ....


हम ये नहीं कहते कि कोई उनके लिये दुआ ना मांगे,
बस इतना चाहते है कि कोई दुआ मे उनको ना मांगे...

मै फ़ना हो गया बदला वो फिर भी नहीं "फ़राज़",
मेरी चाहत से सच्ची थी नफरत उसकी ........

तुम जान भी मांगते तो ख़ुशी से दे देते हम ,
बिना मांगे दिल ले गए ये अच्छी बात नहीं ...

मेरी आंख ने तुझे भी, बाख़ुदा ‘शकील‘ पाया,
मैं समझ रहा था मुझसा, कोई दूसरा नहीं है .............।

अब दुआ है यही की कोई तुमको तुमसा मिले ,
क्योकि मतलब तो हमें बस इंतकाम से है .....

Ye apne zarf ki had hai ya faqat tera lihaaz,,,
Tere sitam ko muqaddar ka likha sochtay hain,,

,
Mera us shehr e adawat mein basera hai jahan,,,
Log sajdon mein b logon ka bura sochtay hain.

गर मेरे पास हौसला होता
दुनिया बनता ऐसी
जिसमें खुदा न होता
.जुल्म वहां भी होता
गुनहगार सहने वाला होता
लड़ते मर जाता, मरने वाला
फरियाद में दिल जाया न जाता
हौसलों कि बात वहां भी होती
हार उस जहां में भी होती ,
जीतने का जस्बा जाया न जाता.
होते तूफ़ान भी जवान वहां
जवानी मन्दिरों में जाया न होती
मज्जिदों कि बात न करता कोई
,दर्द कि हर बात अजान होती .
गर मेरे पर हौसला होता
दुनिया बनता ऐसी
जिसमें खुदा न होता ..
-AMIT MISHRA

मैकदे में कल किसने कितनी पी याद नहीं .
पर ये मैकदा मेरी बस्ती के कई घर पी गया .........


Wednesday, March 10, 2010

जो साज से निकली है वो धुन सबने सुनी है ,
जो तार पे गुजरी है वो किस दिल को पता हैं ...

जाने क्यों देख रहे है ऐसी नजरो से लोग मुझे ,
जुनूँ मे जैसा होना चाहिए वैसा ही तो हू मे

KAHA THA USSNE KI APNA BANA KE CHODEGA "FARAZ"
HUWA BHI YUN KE APNA BANA KE CHOD DIYA
*
ISS LIYE KOI ZAYDA NAHI RUKTA HAI YAHA
LOG KEHTE HAIN KI MERE DIL PE TERA SAYA HAI
*
MAIN USKA HUN, YE RAAZ TU WO JAAN GAYA HAI "FARAZ"
WO KIS KA HAI, YE EHSAAS WO HONE NAHIN DETA..!!
*
har gunah se tauba kar li meine
tujhe se ishq ke gunah ke baad
*
main baddua toh nahi de raha hun ussko magar
dua yahi hai usse ab koi mujhsa na mile
*
Ungliyan Aaj Bhi Isi Soch Main gum Hain "Faraz"
Usne Kaise Naye Hath Ko Thama Hoga !
*
taluq todta hun toh mukamal tod deta hun
jise main chod deta hun mukamal chod deta hun
yakin rakhta nahi main kisi kache taluq par
jo dhaga tutne wala ho usko tod deta hun
*
teri ibtada koi aur hai teri inteha koi aur hai !
teri baat humse hui kya tera muda koi aur hai !
hamen shonq tha badi der se ke tere shreek_e_safar bane !
tere sath chal ke khabar hui tera rasta koi aur hai !
tujhe fikar hai ke badal diya mujhe gardish_e_shobo roz ne !
kabhi khud se bhi toh sawal kar tu wahi hai ya koi aur hai

zara na moom hua pyar ki harrart se
chatkh ke tuut gaya dil ka skhat aisa tha
*
achchi chizen lagengi aur achchi
darmiyan kuch kharab rakh dena
*
itna kuch toh hota hai
tum mere ho jao na
*
haq fateh-yaab[to win]mere khuda kyun nahi hua
tune kaha tha,tera kaha kyun nahi hua
jab hashr isi zamin pe uthaye gaye to phir
barpa yahin pe roz-e-jaza kyun nahi hua
vo sho'la saaz bhi isi basti ke log thay
unki gali mein raqs-e-hawa kyun nahi hua
*
ilaahi kyun nahi uthti kaymat mazra kya hai
hamare samne pehlu mein vo dushman ke baithe hai
nighahe shokh-0-chasm-e-shonq mein dar_parda chupti hai
ki vo chilman mein hai,nazdik hum chilman ke baithe hai
kisi ki shaamat ayegi,kisi ki jaan jayegi
kisi ki taak mein vo baam[khidki]par ban-th'an ke baithe hai
*

शाम-ए-तन्हाई में जब तेरी यादे जवाँ होती है ...
ऐसी खालिशो की तो सिर्फ मय ही दवा होती है ..

khataa to jab ho ke ham hal-e-dil kisi se kahe .
kisi ko chahte rahna koi khata to nahi .............
chandni raat me safed jode me jo tu aa jaye sach kahu
isa ke hath se gir jaye salib aur budhdha ka dhyan ukhad jaye

gair-mumkin hai ki haalata ki guththi suljhe ,
ahl-e-danish ne bahut soch ke uljhayi hai

ek najar pyar se jiski janib tum dekh lete ho
tamam umr fir us dil ki pareshani nahi jati

nadan hai waij jo karta hai ek kayamat ka charcha
yaha roj nigahe milti hai yaha roj kayamat hoti hai

ek najar pyar se dekha tumne
yu laga ek umr jee liye ham

jindagi ko sambhalkar rakhiye...............
jindagi maut ki amanat hai

इस जाम को तोड़ दू ....पर ये ख़याल है .....
शीशे की पालकी मैं कोई खुशजमाल है .......


हमसे भागा न करो दूर गजालो (हिरन का बच्चा ) की तरह
हमने चाहा है तुम्हे चाहने वालो की तरह

KAHA THA USSNE KI APNA BANA KE CHODEGA "FARAZ"
HUWA BHI YUN KE APNA BANA KE CHOD DIYA
*
ISS LIYE KOI ZAYDA NAHI RUKTA HAI YAHA
LOG KEHTE HAIN KI MERE DIL PE TERA SAYA HAI
*
MAIN USKA HUN, YE RAAZ TU WO JAAN GAYA HAI "FARAZ"
WO KIS KA HAI, YE EHSAAS WO HONE NAHIN DETA..!!
*
har gunah se tauba kar li meine
tujhe se ishq ke gunah ke baad
*
main baddua toh nahi de raha hun ussko magar
dua yahi hai usse ab koi mujhsa na mile
*
Ungliyan Aaj Bhi Isi Soch Main gum Hain "Faraz"
Usne Kaise Naye Hath Ko Thama Hoga !
*
taluq todta hun toh mukamal tod deta hun
jise main chod deta hun mukamal chod deta hun
yakin rakhta nahi main kisi kache taluq par
jo dhaga tutne wala ho usko tod deta hun
*
teri ibtada koi aur hai teri inteha koi aur hai !
teri baat humse hui kya tera muda koi aur hai !
hamen shonq tha badi der se ke tere shreek_e_safar bane !
tere sath chal ke khabar hui tera rasta koi aur hai !
tujhe fikar hai ke badal diya mujhe gardish_e_shobo roz ne !
kabhi khud se bhi toh sawal kar tu wahi hai ya koi aur hai

dil ki dehleej pe shamshir-bakaf baithe raho
kisko malum kab koi tamnna jage......

तेरे गम की डली उठाकर जुबा पे रख ली है देख मैंने ...
ये कतरा कतरा पिघल रही है मैं कतरा कतरा जी रहा हूँ

या इलाही क्या यही है हासिल-ए-तक़दीर-ए-इंसानी ,
जिधर देखो परेशानी परेशानी परेशानी .......

lo dekh lo ye ishq hai ....ye hijr{judai}..ye vasl{milan}
ab laut chale aao bahut kaam pada hai
javed akhtar ka hai

muje dekha to shaitaan bhi chilla pada .......
aadmi aadmi are baapre aadmi.....

ये दर्दे हिज्र, ये बेचारगी, ये महरूमी ,
दुआ की बेअसरी के सिवा कुछ भी नहीं .

गुरूरे इल्मो, हूनर फक्र ,अक्लो दानिशो फन,
जहुरे बेखबरी के सिवा कुछ भी नहीं .

जहाने शौक की नाकामियों तही दस्ती ,
हमारी कमंजोरी के सिवा कुछ भी नहीं ..

कटी रात सारी मेरी मैकदे में,
खुदा याद आया सवेरे-सवेरे

मय रहे मीना रहे गर्दिश में पैमाना रहे
मेरे साकी तू रहे आबाद मैखाना रहे

किस-किस तरह से मुझ को न रुस्वा किया गया
गैरों का नाम मेरे लहू से लिखा गया
- शहरयार

एक टूटी हुई जंजीर की फरियाद हैं हम
और दुनिया ये समझती है कि आजाद हैं हम
- मेराज फैजाबादी

उची इमारतो से मकान मेरा घीर गया ......
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए


हमने तन्हाईयो को महबूब बना रखा है .............
राख के डेर में शोलों को दबा रखा है ....

बेवफा भी हो सितमगर भी जफा पेशा भी
हम खुदा तुम को बना लेंगे तुम आओ तो सही
- मुमताज मिर्जा
आप को भूल जायें हम इतने तो बेवफा नहीं
आप से क्या गिला करें आप से कुछ गिला नहीं
- तस्लीम फाज्ली
आ के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही
कौन मानेगा कि हम में बेवफा कोई नहीं
- अहमद फराज
हम बा-वफा थे इसलिए नजरों से गिर गये
शायद तुम्हें तलाश किसी बेवफा की थी
- अज्ञात
बरसे बगैर ही जो घटा घिर के खुल गई
इक बेवफा का अहद-ए-वफा याद आ गया
- खुमार बाराबंकवी
फिर उसी बेवफा पे मरते हैं
फिर वही जिंदगी हमारी है
- मिर्जा गालिब
हमें भी दोस्तों से काम आ पड़ा यानी
हमारे दोस्तों के बेवफा होने का वक्त आया
- हरीचंद अख्तर
इन्सान अपने आप में मजबूर है बहुत
कोई नहीं है बेवफा अफसोस मत करो
- बशीर बद्र
तुम भी मजबूर हो हम भी मजबूर हैं
बे-वफा कौन है, बा-वफा कौन है
- बशीर बद्र
पी शौक से वाइज अरे क्या बात है डर की
दोजख तिरे कब्जे में है जन्नत तेरे घर की
- शकील
मैं मैकदे की राह से होकर गुजर गया
वरना सफर हयात का काफी तबील था
- अब्दुल हमीद ''अदम''
कुछ सागरों में जहर है कुछ में शराब है
ये मसअला है तश्नगी किससे
Reply
delete 9/28/08
Vaibhav Murhar:
नींद इस सोच से टूटी अक्सर
किस तरह कटती हैं रातें उसकी
- परवीन शाकिर

ऐसे मौसम भी गुजारे हम ने
सुबहें जब अपनी थीं शामें उसकी
- परवीन शाकिर

आंखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते
अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते
- अकबर इलाहाबादी

अब ये होगा शायद अपनी आग में खुद जल जायेंगे
तुम से दूर बहुत रह कर भी क्या पाया क्या पायेंगे
- अहमद हमदानी

ये खुले खुले से गेसू, इन्हें लाख तू संवारे
मेरे हाथ से संवरते, तो कुछ और बात होती
- आगा हश्र

कुछ तुम्हारी निगाह काफिर थी
कुछ मुझे भी खराब होना था
- मजाज लखनवी

न जाने क्या है उस की बेबाक आंखों में
वो मुंह छुपा के जाये भी तो बेवफा लगे
- कैसर उल जाफरी
किसी बेवफा की खातिर ये जुनूं फराज कब तलक
जो तुम्हें भुला चुका है उसे तुम भी भूल जाओ
- अहमद फराज
काम आ सकीं न अपनी वफायें तो क्या करें
इक बेवफा को भूल न जायें तो क्या करें
- अख्तर शीरानी
इस से पहले कि बेवफा हो जायें
क्यों न ऐ दोस्त हम जुदा हो जायें
- अहमद फराज
इस पुरानी बेवफा दुनिया का रोना कब तलक
आइए मिलजुल के इक दुनिया नई पैदा करें
- नजीर बनारसी
गुलज़ार की कुछ बहुत सुंदर पंक्तियां:

आनंद से:

मौत तू एक कविता है,
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको

डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे
ज़र्द सा चेहरा लिये जब चांद उफक तक पहुचे
दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के करीब
ना अंधेरा ना उजाला हो, ना अभी रात ना दिन

जिस्म जब ख़त्म हो और रूह को जब साँस आऐ
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको

मरासिम से (शायद) :

सुबह सुबह एक ख्वाब की दस्तक पर,
दरवाज़ा खोला और देखा,
सरहद के उस पार से कुछ मेहमान आये हैं,
आँखों से मानूस थे सारे,
चेहरे सारे सुने सुनाये,
पाँव धोये, हाथ धुलवाये,
आँगन में आसन लगवाये,
और तन्दूर पर मक्के के कुछ मोटे मोटे रोख पकाये,
पोटली में मेहमान मेरे,
पिछले सालों कि फसलों का गुड़ लाये थे,

आँख खुली तो देखा घर में कोई नहीं था,
हाथ लगा कर देखा तो तन्दूर अभी तक बुझा नहीं था,
और होठों पे मीठे गुड़ का ज़ायका अब तक चिपक रहा था,
ख्वाब था शायद, ख्वाब ही होगा,
सरहद पर कल रात सुना है चली थी गोली,
सरहद पर कल रात सुना है कुछ ख्वाबों का खून हुआ था।
------------------------
Reply
delete 4/19/08
Vaibhav Murhar:
गुलज़ार की कुछ छोटी छोटी बहुत सुंदर क्रतियां:

-------------
नज़्म उलझी हुई है सीने में
मिसरे अटके हुए हैं होठों पर
उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तरह
लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नहीं
कब से बैठा हूँ मैं जानम
सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा

बस तेरा नाम ही मुकम्मल है
इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी

---------------
वो ख़त के पुरज़े उड़ा रहा था
हवाओं का रुख़ दिखा रहा था

कुछ और भी हो गया नुमायाँ
मैं अपना लिखा मिटा रहा था

उसी का इमान बदल गया है
कभी जो मेरा ख़ुदा रहा था

वो एक दिन एक अजनबी को
मेरी कहानी सुना रहा था

वो उम्र कर रहा था मेरी
मैं साल अपने बढ़ा रहा था
---------------

आदतन तुम ने कर िदये वादे
आदतन हम ने ऐतबार िकया
तेरी राहों में हर बार रुक कर
हम ने अपना ही इन्तज़ार िकया
अब ना माँगेंगे िजन्दगी या रब
ये गुनाह हम ने एक बार िकया

----------------
Reply
delete 4/19/08
Vaibhav Murhar:
नज़्म उलझी हुई है सीने में
मिसरे अटके हुए हैं होठों पर
उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तरह
लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नहीं
कब से बैठा हूँ मैं जानम
सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा

बस तेरा नाम ही मुकम्मल है
इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी
Reply
dil khush huwa hai........
masjid-e-viran dekhkar
meri tarah khuda ka bhi
khana(ghar) kharab hai!!!!!!!!!

khuda bhi chup ke pine laga hai
ulzan si dil ko ho gayi..........
kal gaya tha jam mera
aaj botal kho gayi................

shamshir bakaf baithe raho dil k dahliz pe......
na jane kab kaunsi tamanna jage !!!!!!!!!!!!!!!!!!

fulo ko todne ki aadat nahi hamari..................
fulo ki tazgi ham saath lekar ghumte hai...........!!!

isase behtar bhi koi fariyad hai .........
ashq bankar aakhome dil aa jaye

ya mulla gar tere namaj me hai dum
to masjid hila k dikha
ya phir do ghut p
aur masjid ko hilti dekh!!!!!!!

ek muddat se aankh royi nahi....................
zil payab ho gayi shayad ,,,,,,,-parveen shakir

kho gayi hai mere mehboob k chehare ki chamak....
chand nikle to jara uski talashi lena.......!!!!!!

कुछ तो वैसे ही है रंगीन लब-ओ रुखसार की बात
और कुछ खून-ए-जिगर हम भी मिला देते है

oooO
(....).... Oooo....
.\..(.....(.....)...
..\_)..... )../....
.......... (_/.....
......
जहा आपके नक्श-ए-कदम
देखते है
खियाबा खियाबा(slowly slowly)
इरम(krupa) देखते है

oooO
(....).... Oooo....
.\..(.....(.....)...
..\_)..... )../....
.......... (_/.....

यह कहके आखरी शब-ए-शम्म हो गयी खामोश
कीसी की ज़िन्दगी लेने से ज़िन्दगी न मीली
Reply

firaq-e- yaar main jo gam milenge
to mere jaise hosle kam milenge
jahan sari duniya nigahae fer legi
wahan e dost tumhe sirf hum milenge

गम-ए-दुनिया को गम-ए-इश्क में शामिल करलो
नशा बढ़ता है शराबे जो शराबो में मिले .......

मेरे सिम्त पत्थर का आना तो ज़रूर था
क्यू की मैं अकेला ही गुनाह्गारो में बेकसूर था

mere maula mere aankho me samender de de
do char bundo se ab guzara nahi hota

बर्बाद गुलिस्ता करने को बस एक ही उल्लू काफी है.......
हर डाल पर उल्लू बैठा है अंजाम गुलिस्ता क्या होगा....... ??????

Kastoori-sa usne bana diya hai hamei.n;
Dil k kundal mei.n basa liya hai hamei.n;
Fir ab dekhiye gumshuda dil ki bekhudi;
Bas 'nvn'!wahin nahin kojta hai hamei.n.

bahut kimti hai tere ye badan ke libaj,
kahi kisi garib ke bete se pyar mat karna.....

Monday, March 8, 2010

मैं उनमत्त प्रेम की प्यासी हृदय दिखाने आयी हूँ
जो कुछ है, वह यही पास है, इसे चढ़ाने आयी हूँ

मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लायी
फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चली आयी

कैसे करूँ कीर्तन, मेरे स्वर में है माधुर्य नहीं
मन का भाव प्रकट करने को वाणी में चातुर्य नहीं

नहीं दान है, नहीं दक्षिणा खाली हाथ चली आयी
पूजा की विधि नहीं जानती, फिर भी नाथ चली आयी

चरणों पर अर्पित है, इसको चाहो तो स्वीकार करो
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है ठुकरा दो या प्यार करो
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है ठुकरा दो या प्यार करो .....
-----सुभद्रा कुमारी चौहान