नहीं है हमारे मुकद्दर में रोशनी........... तो ना सही ................
फिर भी खिड़की खोलो...............कुछ हवा तो आये .............
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.ख़ुदा नहीं न सही..... आदमी का ख़्वाब सही...............
कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिये..............
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.कुछ ऐसे भी हादसे होते है जिंदगी में "फ़राज़"...
इंसान बच तो जाता है पर ज़िंदा नहीं रहता ...........
हमारी आवारगी में कुछ तुम्हारा भी दखल है "फ़राज़"
तुम्हारी याद आती है तो घर अच्छा नहीं लगता .....
अब इसलिये भी कोई ज़्यादा नही रुकता है यहाँ
लोग कहते है मेरे दिल पे तेरा साया है ........
मुद्दते गुजरी तेरी याद भी न आई हमे,
और हम भूल गए हो तुम्हे ऐसा भी नहीं........
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मकतबे इश्क (इश्क की पाठशाला ) का यह निराला उसूल देखा ................
उसको छुट्टी ना मिली जिसको के सबक याद हुआ .............
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.बहोत अजीब है ये बंदिशे......मुहब्बत की 'फ़राज़'
न उसने कैद में रक्खा ........न हम फरार हुए ......
एक भूल है ....जो अक्सर याद आती है 'बादल'
और एक याद है ....जो भूलकर भी भूली नहीं जाती..!!
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तुमको नाराज ही रहना है तो कुछ बात करो "फ़राज़",
यु चुप रहने से मुहब्बत का गुमाँ होता है ..
ये और बात है की वो वफ़ा न कर सका,
मगर कमबख्त ने जो वादे किये वो गज़ब के थे.............
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मेरे दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है ,
जो भी गुजरा है उसने लूटा है ..........
मैं उम्र भर न दे सका 'अदम' कोई जवाब,
वह इक नजर में, इतने सवालात कर गये......................
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तुम्हे भी याद नहीं और मै भी भूल गया ...............
वो लम्हा कितना हसीन था मगर फिजूल गया ......
क्या क्या ना हुआ जुनूं में हमसे मत पूछिए ...........
उलझे कभी जमीं से तो कभी आसमा से हम
अब नज़ा का आलम है मुझ पर ......तुम अपनी मोहब्बत वापस लो
जब कश्ती डूबने लगती है ..........तो बोझ उतारा करते हैं..........
(नज़ा == अनबन, लड़ाई)
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चलो अच्छा हुवा के इश्क़ में मग्लूब हुए ....'बादल'
सुना है कामयाबी इंसान को मगरूर बना देती है..........
ऐ नामावर (postman ) तू ही बता .......तुने तो देखे होंगे ..........
कैसे होते है वो खत ............जिनके के जवाब आते है ..............
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ये सोच कर उसकी हर बात को सच माना है "फ़राज़"
के इतने ख़ूबसूरत लब भला झूठ कैसे बोलेंगे ..............
खुश शक्ल (अच्छी सूरत वाला ) भी है वो ...... ये अलग बात है मगर .........
हमको जहीन (समझदार) लोग ..........हमेशा अज़ीज़ थे ..........
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तमाम उम्र हम वफा के गुनहगार रहे,
यह और बात है कि हम आदमी तो अच्छे थे.............
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"मीर" बहुत खीचती है यार के कूचे की जमीं ,
लहू उस खाक पे गिरना है मुक़र्रर अपना ........
काम सब फिजूल है .............जो सब करते है .............
हम कुछ नहीं करते है और ........गजब करते है ...........
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राहत इन्दौरी
वही कारवां......... वही रास्ते ....... .. वही ज़िन्दगी............. वही मरहले..........
मगर अपने-अपने मुक़ाम पर....... .कभी तुम नहीं...... कभी हम नहीं.............
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शकील
अब इसलिये भी कोई ज़्यादा नही रुकता है यहाँ
लोग कहते है मेरे दिल पे तेरा साया है ............
हमारी आवारगी में कुछ तुम्हारा भी दखल है "फ़राज़"
तुम्हारी याद आती है तो घर अच्छा नहीं लगता .........
कुछ ऐसे भी हादसे होते है जिंदगी में "फ़राज़"...
इंसान बच तो जाता है पर ज़िंदा नहीं रहता .........
ये सोच कर तस्बीह (माला) तोड़ दी मैंने "फराज" ,
क्या गिन गिन नाम लेना उसका जो बेहिसाब देता है ...........
छोड़ा न रश्क(Jealousy) ने कि तेरे घर का नाम लूँ
हर एक से पूछता हूँ कि जाऊँ किधर को मैं....
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रोज कहता हूँ न जाउँगा घर उनके
रोज उस कूचे में इक काम निकल आता है
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जिन्दगी अपनी जब इस शक्ल से गुजरी 'गालिब',
हम भी क्या याद करेंगे कि खुदा रखते थे...........
ऐ समंदर........... तुझे मै जानता हूँ लेकिन .................
वो आखें ज्यादा गहरी है..... जिनमे मै डूब जाता हूँ
माना कि तुम गुफ्तगू के फन में माहिर हो "फ़राज़" |
वफ़ा के लफ्ज़ पे अटको तो हमें याद कर लेना ||
रोटी सस्ती कर दो तो कुछ बात बने
मोबाइल सस्ते करने से, क्या होगा.....
तुमको नाराज ही रहना है तो कुछ बात करो "फ़राज़",
यु चुप रहने से मुहब्बत का गुमान होता है ............
इलाजे दर्दे दिल तुम से मेरे मसीहा हो नहीं सकता
तुम अच्छा कर नहीं सकते मैं अच्छा हो नहीं सकता
तुम्हें चाहूँ, तुम्हारे चाहने वालों को भी चाहूँ
मेरा दिल फेर दो मुझ से यह सौदा हो नहीं सकता..
मेरा उस शहर-ऐ-अदावत में बसेरा है "फ़राज़"
जहाँ लोग सजदो में भी लोगों का बुरा चाहते है ......
जब मैकदा छुटा तो फिर अब क्या जगह की क़ैद
मस्जिद हो, मदरसा हो, कोई खानक़ाह(आश्रयस्थल ) हो
सुनते है बहिश्त (जन्नत )की तारीफ सब दुरुस्त (तरफ)
पर खुदा करे की वो तेरी ही जल्वागाह हो ..
------ग़ालिब
या इलाही क्या यही है हासिल-ए-तक़दीर-ए-इंसानी ,
जिधर देखो परेशानी परेशानी परेशानी .......
फ़रिश्ते से बेहतर है इंसान बनना..
मगर उसमे लगती है मेहनत ज्यादा...
अपनी बेवफाई पे मलाल आता तो होगा,
उन्हें मेरा ख्याल आता तो होगा...............
पा लेते होंगे वो दिल पे काबू ,
उन्हें भी ये कमाल आता तो होगा .............
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दिन सलीके से उगा, रात ठिकाने से रही
दोस्ती अपनी भी कुछ रोज़ ज़माने से रही
चंद लम्हों को ही बनाती हैं मुसव्विर आँखें
जिंदगी रोज़ तो तस्वीर बनाने से रही.
सभी कुछ है बस तुम नहीं हो प्यारे ,
और तुम नहीं हो तो कुछ भी नहीं है प्यारे ......
बहुत तल्ख़ थी वो बात जो उसने कही थी ,
बात तो भूल गया पर याद है लहजा उसका..........
तल्ख़= कडवी
नहीं आती जब उनकी याद तो बरसो नहीं आती ,
और जब वो याद आते है तो अक्सर याद आते है ....
अच्छा है दील के पास रहे...पासबाने अकल..
लेकिन कभी कभी ..उसे तनहा भी छोड़ दे....
--इकबाल
इसी में इश्क की किस्मत बदल भी सकती थी ..
जो वक़्त बीत गया मुझ को आज़माने में !
कुछ मोहब्बत का नशा था पहले हम को "फ़राज़" !
दिल जो टूटा तो नशे से मोहब्बत हो गयी !!
हमने तो सोचा था की अश्कों की किश्तें चुक गयी ,
मगर कल रात एक तस्वीर ने फिर से तकाज़ा कर दिया...........
बहुत आसान था तेरे चेहरे को भूल जाना ,
मुश्किल तो तब हुई जब तेरा मिजाज याद आया
खोजने से उस जैसे हजारो हसीन चेहरे मिलेंगे ,
मगर वो जलाने का अंदाज .........वो बेवफाई ...........वो अदा कहा मिलेगी ......
ये और बात कि मन्ज़िल पे हम पहुँच न सके
मगर ये क्या कम है कि राहों को छान बैठे हैं........
जीस्त में क्या क्या गवाया...इसका गम न कर 'बादल '
एक रोज़ .........तो जीस्त भी गवानी पड़ेगी ...!!
जीस्त = life
आता है दाग-ए-हसरते दिल का शुमार याद...
मुझसे मेरे गुनाहो का हिसाब ऐ खुदा न मांग.
कल मिला वक़्त तो जुल्फे तेरी सुलझा लूँगा,
आज उलझा हूँ ज़रा वक़्त को सुलझाने में....
बंदगी हमने छोड़ दी "फ़राज़"
क्या करें लोग जब खुदा हो जाएँ !!
मुदते गुज़रीं तेरी याद भी आई ना हमें
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं......
ये संगदिलों की दुनिया है , ज़रा संभल के चलना...
यहाँ पलकों पे बिठाया जाता है, नज़रों से गिराने के लिए .........!
दिल में अब यूँ तेरे भूले हुये ग़म आते हैं
जैसे बिछड़े हुये काबे में सनम आते हैं
इक इक कर के हुये जाते हैं तारे रौशन
मेरी मन्ज़िल की तरफ़ तेरे क़दम आते हैं
रक़्स-ए-मय तेज़ करो, साज़ की लय तेज़ करो
सू-ए-मैख़ाना सफ़ीरान-ए-हरम आते हैं
कुछ हमीं को नहीं एहसान उठाने का दिमाग
वो तो जब आते हैं माइल-ब-करम आते हैं
और कुछ देर न गुज़रे शब-ए-फ़ुर्क़त से कहो
दिल भी कम दुखता है वो याद भी कम आते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
जाने क्यों देख रहे है ऐसी नजरो से लोग मुझे ,
जुनूँ मे जैसा होना चाहिए वैसा ही तो हू मे ....................
मुझे गुमान है के चाहा है बहुत ज़माने ने मुझे...
मै अज़ीज़ तो सब को हूँ मगर ज़रूरतो की तरह......!!!
तेरी तलब में जला डाले आशियाने तक
कहाँ रहूँ मैं तेरे दिल में घर बनाने तक
--अहमद फ़राज़
पोंछ कर अश्क अपनी आँखों से मुस्कुअराओ तो कोई बात बने,
सर झुकाने से कुछ नहीं होगा सर उठाओ तो कोई बात बने"
कितना आसाँ था तेरे हिज्र में मरना जानाँ
फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते ..........
किसी को न पाने से ज़िन्दगी ख़तम नहीं होती ''फ़राज़ ''
लेकिन किसी को पा कर खो देने से कुछ बाकी नहीं रहता ....
हम ये नहीं कहते कि कोई उनके लिये दुआ ना मांगे,
बस इतना चाहते है कि कोई दुआ मे उनको ना मांगे...
मै फ़ना हो गया बदला वो फिर भी नहीं "फ़राज़",
मेरी चाहत से सच्ची थी नफरत उसकी ........
तुम जान भी मांगते तो ख़ुशी से दे देते हम ,
बिना मांगे दिल ले गए ये अच्छी बात नहीं ...
मेरी आंख ने तुझे भी, बाख़ुदा ‘शकील‘ पाया,
मैं समझ रहा था मुझसा, कोई दूसरा नहीं है .............।
अब दुआ है यही की कोई तुमको तुमसा मिले ,
क्योकि मतलब तो हमें बस इंतकाम से है .....
Ye apne zarf ki had hai ya faqat tera lihaaz,,,
Tere sitam ko muqaddar ka likha sochtay hain,,
,
Mera us shehr e adawat mein basera hai jahan,,,
Log sajdon mein b logon ka bura sochtay hain.
गर मेरे पास हौसला होता
दुनिया बनता ऐसी
जिसमें खुदा न होता
.जुल्म वहां भी होता
गुनहगार सहने वाला होता
लड़ते मर जाता, मरने वाला
फरियाद में दिल जाया न जाता
हौसलों कि बात वहां भी होती
हार उस जहां में भी होती ,
जीतने का जस्बा जाया न जाता.
होते तूफ़ान भी जवान वहां
जवानी मन्दिरों में जाया न होती
मज्जिदों कि बात न करता कोई
,दर्द कि हर बात अजान होती .
गर मेरे पर हौसला होता
दुनिया बनता ऐसी
जिसमें खुदा न होता ..
-AMIT MISHRA
मैकदे में कल किसने कितनी पी याद नहीं .
पर ये मैकदा मेरी बस्ती के कई घर पी गया .........
Saturday, August 13, 2011
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सुन्दर प्रस्तुति, सुन्दर भाव , बधाई.
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Beautiful piece of writing.... :)
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